भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।

दो चार गाम राह को... | ग़ज़ल

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 निदा फ़ाज़ली

दो चार गाम राह को हमवार देखना 
फिर हर क़दम पे इक नई दीवार देखना 

आँखों की रौशनी से है हर संग आईना 
हर आइने में ख़ुद को गुनहगार देखना 

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी 
जिस को भी देखना हो कई बार देखना 

मैदाँ की हार जीत तो क़िस्मत की बात है 
टूटी है किस के हाथ में तलवार देखना 

दरिया के इस किनारे सितारे भी फूल भी 
दरिया चढ़ा हुआ हो तो उस पार देखना 

अच्छी नहीं है शहर के रस्तों से दोस्ती 
आँगन में फैल जाए न बाज़ार देखना 

-निदा फ़ाज़ली

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश