यह समझाने की जरूरत नहीं है कि भले बर्ताव से पराया भी अपना सगा बन जाता है और बुरे बर्ताव से अपना सगा भी पराया और दुश्मन बन जाता है। यह सब लोग जानते हैं कि चिड़िया और जानवर भी अपने हमदर्दो को पहचानते हैं, आदमी की तो कोई बात ही नहीं। सरकसों में तो बड़े-बड़े डरावने जानवर भी प्यार और पुचकार से अजीब करामात कर दिखाते हैं।
सुग्गा नमक हराम चिड़िया कहलाता है, लेकिन वह भी अच्छे बर्ताव के वश में होकर अपने मालिक के हाथों पर खुला बैठा फिरता है। बहुत-से शौकीन आदमी अपने बढ़िया बिछावन पर बिल्ली और नेवले को बगल में लेकर सोते हैं। गाय, बैल, घोड़े, बकरे, कुत्ते, मेड़ वगैरह जानवर तो यहाँ तक पोस मानते हैं कि इनकी नेकी देखकर बड़ा अचरज होता है। लेकिन ये तो पालतू जीव हैं, इनका पोस मानना कोई अचरज की बात नहीं है। अलबत्ता हाथी, भालू, बाघ, चीता वगैरह जंगली जानवरों की अजब नेकनीयती देखकर जरूर ही अचरज होता है। नेक सलूक एक ऐसी चीज है, जिसकी बदौलत आदमी चाहे तो जहरीले साँप को भी अपना दोस्त बना सकता है।
सुना जाता है कि पहले जमाने में हिन्दुस्तान के ऋषि-मुनियों के आश्रम में खूँखार जानवर भी बेखटक घूमा करते थे। जंगलों में पेड़ों की छाँह में बाघ और हिरन एक साथ ही आराम करते थे। महात्मा गाँधी के 'साबरमती आश्रम' में रहनेवाले उनके एक साथी ने अपनी एक किताब में लिखा है कि एक दफा महात्माजी चुपचाप बैठे कुछ लिख रहे थे और उनकी बगल में ही एक भयानक साँप फन फैलाये जीभ लपलपा रहा था लेकिन जब महात्माजी की नजर उधर इशारे से खींची गई, तब उन्होंने मुस्कुराकर कहा कि इसे छेड़ो मत, ठंडक पाकर यहाँ आ बैठा है! बस, थोड़ी देर में वह साँप चुपचाप महात्माजी की पलथी के ऊपर से सरककर झट निकल गया। क्या अब भी कोई कह सकता है कि हिन्दुस्तान के ऋषियों के बच्चे बाघिनों की गोद में या बाघों की देह पर लोटपोट नहीं करते थे?
बात असल यह है कि नेक दिल और अच्छे खयाल का सब जीवों पर जरूर ही अच्छा असर पड़ता है-चाहे आदमी हो या जानवर।
सुना गया है कि एक अँगरेज औरत को तो साँप पालने का शौक है। वह जहरीले साँपों के मुँह को चूम लेती है। कितने ही अँगरेज और राजा-रईस बाघों और चीतों को कुत्तों की तरह पालतू बनाकर उन्हें अपनी कुर्सी या पलँग के नजदीक बिठाते और उनके बदन पर हाथ फेरते हैं। यह कोई अनहोनी बात नहीं, आँखों-देखी घटना है।
बन्दर जैसे नटखट जानवर भी अच्छे बर्ताव पर काबू में आ जाते और पालनेवाले के पीछे-पीछे घूमते और उसका हुक्म बजाते हैं। असल में 'नेक बर्ताव' एक ऐसी चीज है जिससे आदमी खतरनाक जानवरों तक को भी अपना साथी बना लेते हैं।
-शिवपूजन सहाय [ साभार : मासिक होनहार', लहेरियासराय, 1937 ] |