पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय सहस्त्र गुना अच्छी है। - अज्ञात।
कुछ अनुभूतियाँ (काव्य)    Print this  
Author:डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड

दूर दूर तक फैला मिला आकाश
चारों ओर ऊँची पहाड़ियाँ
शांत नीरव वातावरण
दूर-दूर तक कोई कोलाहल न था।
शांति केवल शांति।

काश ! ऐसी शांति मेरे जीवन में भी आ पाती।
जीवन में
चारों ओर से बढ़ता हुआ कोलाहल
ऐसा लगता था मन का
भावनाओं को
जीवनेच्छा के सागर को
तीव्र वेग से
एकाएक
एक पल में ही विकीर्ण कर देगा।

---

दिन का आना
रात का जाना
सभी को नाम दिया जाता है
मात्र
‘प्रकृति के परिवर्तन' क्रम का।
फिर
मनुष्य
जीवन के ग़म और ख़ुशी को भी
सहज उतार-चढ़ाव के रूप में
क्यों नहीं स्वीकारता।

--
विडम्बना है कुछ जीवन की
जो कृत्रिमता के सुखी आवरण को उतार कर
वास्तविकताओं का
दर्शन करा देती हैं
और
शेष रह जाती है
एक तड़प
एक घुटन
और इन सबके बाद बच जाता है
भटकाव।
वही भटकाव जो मेरे जीवन की अनिवार्यता बन गया है।
लक्ष्य बन गया है
जो मंज़िल तक पहुँचा तो देगा
पर फिर उसी तरह
तड़पा कर
भटका कर।

-डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड, न्यूज़ीलैंड

Previous Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश