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झुकी न अलकेंझपी न पलकेंसुधियों की बारात खो गईदर्द पुरानामीत न जानाबातों ही में प्रातः हो गईघुमड़ी बदलीबूँद न निकलीबिछुड़न ऐसी व्यथा बो गईरोते-रोते रात सो गई
-अटल बिहारी वाजपेयी
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