पृथ्वी के प्रारम्भ में जब परमात्मा ने हमारी नयनाभिराम सृष्टि रची, तो आदमी को चार हाथ दिये, चार पाँव दिये, दो सिर दिये और एक दिल दिया । और कहा-"तू कभी दुःखी न होगा । तेरा संसार स्वर्ग है।"
उस समय आदमी बलवान, सूरमा, शान्त, प्रसन्न-हृदय और प्रफुल्ल-वदन था। प्रकृति की समझ में न आनेवाली सारी शक्तियाँ सदा उसके सामने पानी भरती थीं, और दुःख दर्द पर और कलह और कष्ट पर संसार के द्वार बन्द थे। और यह बीमारियाँ संसार का द्वार खटखटाती थीं, और लौट जाती थीं।
परन्तु शैतान को यह स्वर्गीय दृश्य पसन्द न आया।
उसने अपने छल-कपट के और धोखा-धड़ी के विनाशकारी शस्त्र लेकर आदमी पर बार-बार आक्रमण किये, परन्तु चार हाथोंवाले, चार पाँववाले, दो सिरोंवाले, एक दिलवाले आदमी के सामने उसकी कोई पेश न गई, और सुधा और संगीत का सुन्दर संसार पाप की काली छाया से सुरक्षित रहा।
परमात्मा अपने जीव की इस वीरता पर प्रसन्न हुआ, और आदमी का संसार स्वर्ग बना रहा ।
आदमी ने यह देखा, और खुश हुआ।
2
बहुत देर के बाद शैतान को दुनिया का फिर ख्याल आया, और उसने दुनिया पर फिर हमला किया।
रात का समय था। आदमी शान्ति की निद्रा में स्वर्ग के सपने देख रहा था । शैतान अपने झिल्लीदार पंजों को धीरे-धीरे जमीन पर रखता हुआ आदमी के पास आया और अपनी जादू की तलवार से उसके दो टुकड़े करके भाग गया। परन्तु आदमी को आधी रात के इस आसुरी कृत्य का ज्ञान न हुआ।
प्रातःकाल जब संग्राम हुआ, तो दो हाथोंवाले, दो पाँववाले, एक सिरवाले, आधे दिलवाले, आदमियों ने शैतान का देह और आत्मा की सम्पूर्ण शक्तियों से मुक़ाबिला किया; परन्तु उनमें साहस और उत्साह न था । और शैतान के वार भारी थे, और आदमी के किये कुछ बनता न था।
शैतान जीत गया।
उसने विजय और विलास का क़हक़हा लगाया, और इसके साथ ही शान्त और संतोष-भरे संसार में ईर्ष्या-द्वेष और दुःख दारिद्रय की भयानक बीमारियों ने प्रवेश किया।
3
अब आदमी वह पहला सूरमा, सज्जन, बुद्धिमान् आदमी न था। उसके अधरों पर मुस्कान के स्थान में ठंडी आहें थीं; और जीवन का प्रकाशमय मार्ग उसकी आँखों से ओझल हो गया था । और उसके दिल में खुशी न थी।
और दो हाथोंवाला, दो पाँवोंवाला, एक सिरवाला, आधे दिलवाला आदमी अपने भगवान के सामने भूमि पर गिर पड़ा, और अपने बीते हुए सुनहरे समय की वापसी के लिए रो-रोकर प्रार्थना करने लगा।
परमात्मा ने अपने उपासक का आर्तनाद सुना, और कहा-"उठ ! निराशा छोड़। अपने बिछुड़े हुए दोनों भाग मिला, और फिर तुझे कोई भी दुःख न दे सकेगा, और तेरा संसार स्वर्ग बना रहेगा।"
प्रेम और पवित्रता की, जीवन और ज्योति की, संगीत और सौन्दर्य की यह अमर वाणी आज भी वायु-मण्डल में उसी तरह गूंज रही है । मगर दुनिया के अजान वेटे उसकी ओर ध्यान नहीं देते, न उनका संसार स्वर्ग बनता है।
शैतान यह देखता है, और हँसता है।
-सुदर्शन [तीर्थ-यात्रा, सरस्वती प्रेस, बनारस, 1945] |