इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए, कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए, इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े, और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए! किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा। एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया, जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया, जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली, और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया, घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने, "जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।" एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना, कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना, ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें, किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना, बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं, बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो। एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
कटीं बेड़ियाँ औ' हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ, किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ, आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में, उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ। हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी, उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो। एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
- हरिवंशराय बच्चन
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