दूर गगन पर सँध्या की लाली सतरंगी सपनों की चुनरी लहरायी आँचल में भरकर तुझे ओ चंदा चाँदनी बनकर मैं मुस्करायी दूर गगन पर----
सँध्या के घूँघट में चंदा ये पुरनम, सागर के आँचल में लहरों की धडकन साँसों में छायी वीणा की सरगम प्राणों में बिखरी मासूम शबनम दूर गगन पर----
अलसाये यौवन पर छायी खुमारी स्वपलिन आँखों में चाह तुम्हारी चूड़ी खनखन प्रीत जगाती पायल रुनझुन गीत सुनाती दूर गगन पर----
आओ हम इक स्वर्ग बनाये बाहों में आकर प्यास बुझाये जीवन भर जो भूल न पाये ऐसा गीत गले मिल गायें दूर गगन पर----
- अनिता बरार ई-मेल: anita.barar@gmail.com (सी डी संकलन - दूरियाँ, 2000)
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