आज ना जाने क्यों फिर से याद आ गया नानी का वह प्यार और दुलार।
भीतर के कोठारे में ना जाने कब से छुपा कर रखी मिठाई हमारे स्वागत के लिये।
धोती के पल्ले में बंधे कुछ सिक्के।
आँखों में भारी असीम ममता एक बार फिर मिल लेने की चाह।
अनगिनत दुआओँ से भरा उनका वह झुर्रियों भरा हाथ।
अगली गर्मियों की छुट्टियों में फिर से आने का वह न्यौता।
सभी कुछ तो याद है मुझे। बस एक बार आँख बंद करने की ही तो देर है!
डॉ॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड न्यूज़ीलैंड
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