दूर बस्ती से बाहर बैठा था एक फ़क़ीर पेट से भूखा था तन कांटे सा सूखा था।
बस्ती में फ़क़ीर की ऐसी हवा है कहते हैं - बाबा के पास हर मर्ज़ की दवा है।
आस-पास मिलने वालों की भीड थी कोई लाया फूल, किसी के डिब्बे मे खीर थी।
फ़क़ीर से माँग रहे थे वे सब जिनके मोटे-मोटे पेट थे देखने में लगते सेठ थे।
बाबा के आगे शीश नवाते थे फल, फूल, मेवे चढ़ाते थे बदले में जाने क्या चाहते थे!
बाबा अपनी धुन में मस्त कभी-कभी आँख उठाते थे, 'इनका पेट ना भरा, ना भरेगा' सोचकर मुसकाते थे फिर अपने आप में खो जाते थे।
- रोहित कुमार 'हैप्पी' |