छूमन्तर मैं कहूँ और फिर, जो चाहूँ बन जाऊँ। काश, कभी पाशा अंकल सा, जादू मैं कर पाऊँ।
हाथी को मैं कर दूँ गायब, चींटी उसे बनाऊँ। मछली में दो पंख लगाकर, नभ में उसे उड़ाऊँ।
और कभी खुद चिड़िया बनकर, फुदक-फुदक उड़ जाऊँ। रंग-बिरंगी तितली बनकर, फूली नहीं समाऊँ।
प्यारी कोयल बनकर कुहुकूँ, गीत मधुर मैं गाऊँ। बन जाऊँ मैं मोर और फिर, नाँचूँ, मेघ बुलाऊँ।
चाँद सितारों के संग खेलूँ, घर पर उन्हें बुलाऊँ। सूरज दादा के पग छूकर, धन्य-धन्य हो जाऊँ।
अपने घर को, गली नगर को, कचरा-मुक्त बनाऊँ। पर्यावरण शुद्ध करने को, अनगिन वृक्ष लगाऊँ।
गंगा की अविरल धारा को, पल में स्वच्छ बनाऊँ। हरी-भरी धरती हो जाए, चुटकी अगर बजाऊँ।
पर जादू तो केवल धोखा, कैसे सच कर पाऊँ। अपने मन की व्यथा-कथा को, कैसे किसे सुनाऊँ।
--आनन्द विश्वास ई-मेल: anandvishvas@gmail.com |