हिंदुस्तान की भाषा हिंदी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर्वगुणकारी नागरी ही है। - गोपाललाल खत्री।
जल, रे दीपक, जल तू (काव्य)    Print this  
Author:मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

जल, रे दीपक, जल तू।
जिनके आगे अँधियारा है, उनके लिए उजल तू॥

जोता, बोया, लुना जिन्होंने,
श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने,
बत्ती बँटकर तुझे संजोया, उनके तप का फल तू।
जल, रे दीपक, जल तू॥

अपना तिल-तिल पिरवाया है,
तुझे स्नेह देकर पाया है,
उच्च स्थान दिया है घर में, रह अविचल झलमल तू।
जल, रे दीपक, जल तू॥

चूल्हा छोड़ जलाया तुझको,
क्या न दिया, जो पाया, तुझको,
भूल न जाना कभी ओट का, वह पुनीत अँचल तू।
जल, रे दीपक, जल तू॥

कुछ न रहेगा, रबात हेगी,
होगा प्रात, न रात रहेगी,
सब जागें तब सोना सुख से तात, न हो चंचल तू।
जल, रे दीपक, जल तू॥

--मैथिलीशरण गुप्त

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