जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
तेरा न्यू ईयर तो मेरा नया साल (विविध)    Print this  
Author:प्रो. राजेश कुमार

नया साल आ गया है और हमारे महाकवि इस तैयारी में है किस अभूतपूर्व और बेजोड़ तरीके से लोगों को नए साल की शुभकामनाएँ दी जाएँ कि वे बस अश-अश करते रह जाएँ। तभी उनके मन में संदेह का कीड़ा रेंगा, जिसके चलते वे हाल ही में उन्होंने लोगों को क्रिसमस दिवस मनाने को मानसिक गुलामी का प्रतीक घोषित करते हुए, तुलसी दिवस (तुलसीदास नहीं, तुलसी पौधा) की शुभकामनाएँ थी, और इसके चलते लोगों की नज़रों में हास्यास्पद बनकर रह गए थे। जाने कहाँ से किसी ने उनके पास तुलसी दिवस की जानकारी भेजी थी, जिसे राष्ट्र प्रेम के वशीभूत होकर उन्होंने इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए भी फ़ॉरवर्ड करने में बहुत गौरव महसूस नहीं अनुभव किया था कि उन्हें तुलसी दिवस तू याद क्रिसमस दिवस ने ही दिलाई थी, अन्यथा तुलसी भी पहले से मौजूद थी और क्रिसमस तो खैर पहले से था ही!

अब नया साल आ गया था और वे बहुत उत्साह के साथ उसके लिए शुभकामनाएँ तैयार करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन फिर से उनके मन में संदेह आ पसरा कि हमारा नया साल तो, उन्हें ठीक से याद नहीं आया कि कब होता है, पर तब नहीं होता जब न्यू ईयर होता है। और वे सोच में पड़ गए कि वे इस अवसर पर लोगों को शुभकामनाएँ दें या नहीं? या फिर इंतज़ार करे कि कोई उन्हें पीपल, बरगद वगैरह के दिवस का संदेश भेजे और वे उसे आगे बढ़ाएँ ।

उन्हें लगा कि अगर उन्होंने न्यू ईयर पर शुभकामनाएँ दे दीं, तो सब उन्हें देशद्रोही समझेंगे, उनके ऊपर संदेह की नज़र रखेंगे, और हो सकता है कि कोई उन्हें पाकिस्तान का टिकट ही न थमा दे।

तभी उनकी पुत्री ने आकर उनके गले में हाथ डालकर मुस्कराते हुए उन्हें कहा, “हैप्पी न्यू ईयर डैड!” 

उन्होंने झट से अपनी पुत्री को प्यार करते हुए उस कहा, “हैप्पी न्यू ईयर माइ डियर डॉटर!” 

पुत्री मुस्कुराते हुए चली गई तो उनके मन में अपराध बहुत जगा और उन्हें लगा कि उन्हें पुत्री को कहना चाहिए था की अभी हमारा नया साल है, और हमारा नया साल तो बाद में आएगा और तभी हम हैप्पी न्यू ईयर, मतलब नव वर्ष की शुभकामनाएँ कहने के हकदार होंगे। 

वे इसी ऊहापोह में थे कि उनके मोबाइल पर बॉस का संदेश आया, “फ़ाइनेंशियल ईयर से पहले सारे बजट को ठिकाने लगाने इंतजाम कर लिया है या नहीं ?”

पहले तो उन्हें बॉस पर ग़ुस्सा आया कि न कोई दुआ सलाम, न कोई नए साल की शुभकामनाएँ, बस झट से अपना काम का तगादा कर दिया! फिर उन्हें लगा कि वे नए साल की शुभकामनाओं की उम्मीद क्यों कर रहे हैं, जबकि हिंदू नया साल तो बाद में आने वाला है। इसके बाद उनके मन में सवाल कौंधा कि ये फ़ाइनेंशियल ईयर भी तो हिंदू कैलेंडर के अनुसार होना चाहिए, बल्कि कैलेंडर क्यों यह तो हिंदू पंचांग के अनुसार होना चाहिए। उन्हें याद आया कि सरकार का, और पूरे देश का कामकाज तो फिरंगी कैलेंडर के अनुसार ही होता है। अगर हिंदू पंचांग को पर अमल करना है, तो सारी चीज़ों को बदलना होगा। उन्हें यह भी लगा कि अब उन्हें अपने दफ़्तर का काम भी छोड़ना होगा, क्योंकि वहाँ ज़्यादातर काम अंग्रेज़ी भाषा में होता है, जो फिरंगियों की भाषा है और जिसका उपयोग करना हिंदू धर्म के खिलाफ़ है। 

फिर उन्होंने अपने ऊपर नजर डाली, तो उन्होंने पाया कि उन्होंने पैंट-क़मीज़ पहनी हुई थी। अगर हिंदू पंचांग को अपनाना होगा, और हिंदू परंपराओं का पालन करना होगा, तो क्या उन्हें अपनी पैंट-क़मीज़ भी उतारनी होगी, और कुर्ता-धोती पहननी होगी, जिसे खींचने के लिए लोग वैसे ही तैयार खड़े रहते हैं? वे उसे नीचे भी लँगोटी तक जाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने खुद को रोक लिया। 

इसके बाद उन्हें खयाल आया कि तब तो उन्हें केक, पेस्ट्री, और अपने सबसे मनपसंद पिज़्ज़ा को छोड़कर हलवा, खीर, और दाल-रोटी से ही काम चलाना होगा। क्या वे ऐसा कर पाएँगे?

उन्हें यह भी समझ आया कि वे अपनी मनपसंद फ़िल्म मॉल में थियेटर मैं पैर फैलाकर भी नहीं देख पाएँगे, बल्कि उन्हें बायोस्कोप में अपना सिर घुसाकर ही फ़िल्मों के नाम पर कटे-फटे दृश्य देखने होंगे। उन्हें नहीं लगता था कि वे इसके लिए तैयार होंगे। 

उन्होंने सामने पड़े हुए अख़बार को उठाया, तो नहीं लगा कि अगर उन्हें अपनी परंपराओं पर ही कायम रहना है, तो फिर वे अखबार पढ़ने के अधिकारी होंगे, बल्कि उन्हें ताड़ पत्र पर कलम से लिखी हुई चीज़ें ही पढ़नी होंगी। टेलीविज़न खोलकर समाचार भी नहीं देख पाएँगे, बल्कि इसके लिए उन्हें मौखिक परंपरा के अनुसार आस-पड़ोस से सुनकर ही समाचारों को ग्रहण करना होगा। उन्हें तो यह सोचकर ही कँपकँपी छूट गई के अगर उन्हें पांडेयजी से समाचार सुनने पड़ेंगे, तो फिर तो उनका भगवान ही मालिक है। 

फिर उन्हें खयाल आया कि उन्हें अपनी पत्नी को कुकिंग रेंज पर भोजन पकाने से भी मना करना होगा, और उसकी जगह पर मिट्टी का चूल्हा रखना होगा, क्योंकि यही तो हिंदू परंपरा है। उन्हें यह भी लगा कि वे पानी को फ़िल्टर नहीं कर सकेंगे और फ़्रिज़ में नहीं रख सकेंगे, बल्कि इसके लिए उन्हें घड़ा और सुराही ख़रीदनी होगी।
आगे सोचते हुए, उन्हें यह भी समझ में आया कि अगर वे बीमार हो गए, तो वे अस्पताल में जाकर विदेशी दवाओं से इलाज नहीं करवा पाएँगे, बल्कि उन्हें अपनी जिंदगी वैध-हकीमों और उनके चूर्ण-अवलेह आदि के हवाले करनी होगी। उन्हें यह भी याद आया कि गरमियों में वे अब एयर कंडीशनर नहीं चला सकेंगे और न ही सर्दियों में हीटर से खुद को गरम कर पाएँगे, बल्कि इसके लिए उन्हें हाथ के पंखे, और लकड़ी जलाने पर ही निर्भर होना होगा।
इसके अलावा, वे कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल करने के अधिकारी भी नहीं रहेंगे, बल्कि उन्हें हिंदू परंपरा का पालन करते हुए ढोल की आवाज़, धुएँ, हल्दी बाँटने जैसी चीज़ों के द्वारा ही सूचना का आदान-प्रदान करना होगा। रोशनी के लिए भी उन्हें बिजली का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं होगा, बल्कि दिया-बाती करनी होगी, और उन्हें नहीं लगता था कि दिया-बाती से कंप्यूटर और इंटरनेट चल सकते थे ।

उनके पूरे शरीर में फुरहरी जैसी दौड़ गई, और उन्हें ऐसा लगा कि किसी ने उठाकर उन्हें उठाकर कई हज़ार साल पहले फेंक दिया है, और वे समझ नहीं पा रहे है के करें तो क्या करें! 

उनका दिमाग़ चकरा गया । काफ़ी सोच-विचारकर उन्होंने इन सब चीजों को अपने दिमाग़ से निकाल दिया, और फिर इस बात पर अमल करते हुए नव वर्ष के अवसर पर ये ख़ूबसूरत शुभकामनाएँ लिखीं कि हमें अपनी परंपराओं का पालन करते हुए, वैश्विक विकास को भी अपनाना चाहिए – 

नव वर्ष मुबारक हो तुमको 
तुम खूब फलो-फूलो प्रियवर।
निर्बाध बढ़ो तुम विकसित हो
नित नूतन प्रगति के पथ पर॥

उनके स्वर में स्वर मिलाकर मैं भी आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ।

-प्रो. राजेश कुमार

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश