गुरु ने कहा किंतु चेला न माना, गुरु को विवश हो पड़ा लौट जाना। गुरुजी गए, रह गया किंतु चेला, यही सोचता हूँगा मोटा अकेला।
चला हाट को देखने आज चेला, तो देखा वहाँ पर अजब रेल-पेला। टके सेर हल्दी, टके सेर जीरा, टके सेर ककड़ी टके सेर खीरा।
टके सेर मिलती थी रबड़ी मलाई, बहुत रोज़ उसने मलाई उड़ाई। सुनो और आगे का फिर हाल ताज़ा। थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा।
बरसता था पानी, चमकती थी बिजली, थी बरसात आई, दमकती थी बिजली। गरजते थे बादल, झमकती थी बिजली, थी बरसात गहरी, धमकती थी बिजली।
गिरी राज्य की एक दीवार भारी, जहाँ राजा पहुँचे तुरत ले सवारी। झपट संतरी को डपट कर बुलाया, गिरी क्यों यह दीवार, किसने गिराया?
कहा संतरी ने-महाराज साहब, न इसमें खता मेरी, ना मेरा करतब! यह दीवार कमजोर पहले बनी थी, इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी।
खता कारीगर की महाराज साहब, न इसमें खता मेरी, ना मेरा करतब! बुलाया गया, कारीगर झट वहाँ पर, बिठाया गया, कारीगर झट वहाँ पर।
कहा राजा ने-कारीगर को सजा दो, खता इसकी है आज इसको कज़ा दो। कहा कारीगर ने, ज़रा की न देरी, महाराज! इसमें खता कुछ न मेरी।
यह भिश्ती की गलती यह उसकी शरारत, किया गारा गीला उसी की यह गफ़लत। कहा राजा ने-जल्द भिश्ती बुलाओ। पकड़ कर उसे जल्द फाँसी चढ़ाओ।
चला आया भिश्ती, हुई कुछ न देरी, कहा उसने-इसमें खता कुछ न मेरी। यह गलती है जिसने मशक को बनाया, कि ज़्यादा ही जिसमें था पानी समाया।
मशकवाला आया, हुई कुछ न देरी, कहा उसने इसमें खता कुछ न मेरी। यह मंत्री की गलती, है मंत्री की गफ़लत, उन्हीं की शरारत, उन्हीं की है हिकमत।
बड़े जानवर का था चमड़ा दिलाया, चुराया न चमड़ा मशक को बनाया। बड़ी है मशक खूब भरता है पानी, ये गलती न मेरी, यह गलती बिरानी।
है मंत्री की गलती तो मंत्री को लाओ, हुआ हुक्म मंत्री को फाँसी चढ़ाओ। चले मंत्री को लेके जल्लाद फ़ौरन, चढ़ाने को फाँसी उसी दम उसी क्षण।
मगर मंत्री था इतना दुबला दिखाता, न गर्दन में फाँसी का फंदा था आता। कहा राजा ने जिसकी मोटी हो गर्दन, पकड़ कर उसे फाँसी दो तुम इसी क्षण।
चले संतरी ढूँढ़ने मोटी गर्दन, मिला चेला खाता था हलुआ दनादन। कहा संतरी ने चलें आप फ़ौरन, महाराज ने भेजा न्यौता इसी क्षण।
बहुत मन में खुश हो चला आज चेला, कहा आज न्यौता छकूँगा अकेला!! मगर आके पहुँचा तो देखा झमेला, वहाँ तो जुड़ा था अजब एक मेला।
यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ, कहा राजा ने इसको फाँसी चढ़ाओ! कहा चेले ने-कुछ खता तो बताओ, कहा राजा ने-‘चुप’ न बकबक मचाओ।
मगर था न बुद्धू-था चालाक चेला, मचाया बड़ा ही वहीं पर झमेला!! कहा पहले गुरु जी के दर्शन कराओ, मुझे बाद में चाहे फाँसी चढ़ाओ।
गुरुजी बुलाए गए झट वहाँ पर, कि रोता था चेला खड़ा था जहाँ पर। गुरु जी ने चेले को आकर बुलाया, तुरत कान में मंत्र कुछ गुनगुनाया।
झगड़ने लगे फिर गुरु और चेला, मचा उनमें धक्का बड़ा रेल-पेला। गुरु ने कहा-फाँसी पर मैं चढूंगा, कहा चेले ने-फाँसी पर मैं मरूँगा।
हटाए न हटते अड़े ऐसे दोनों, छुटाए न छुटते लड़े ऐसे दोनों। बढ़े राजा फ़ौरन कहा बात क्या है? गुरु ने बताया करामात क्या है।
चढ़ेगा जो फाँसी महूरत है ऐसी, न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी। वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा, यह संसार का छत्र उस पर तनेगा।
कहा राजा ने बात सच गर यही गुरु का कथन, झूठ होता नहीं है कहा राजा ने फाँसी पर मैं चढूँगा इसी दम फाँसी पर मैं ही टँगूँगा।
चढ़ा फाँसी राजा बजा खूब बाजा प्रजा खुश हुई जब मरा मूर्ख राजा बजा खूब घर-घर बधाई का बाजा। थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा
-सोहन लाल द्विवेदी
|