एक बार बादशाह अकबर के दरबार में कुछ दरबारी बीरबल से बहुत जलन करने लगे।
उन्होंने मिलकर बादशाह के कान भर दिए–“जहाँपनाह! बीरबल अब आपकी इज़्ज़त नहीं करता, वो खुद को सबसे बड़ा समझता है!”
अकबर को ग़लतफ़हमी हो गई। गुस्से में आकर उन्होंने तुरंत हुक्म दिया–“बीरबल को सूली पर चढ़ा दिया जाए!”
बीरबल को जब ये पता चला, तो वह घबराए नहीं। वह शांत थे, उन्होंने बस इतना कहा –“जहाँपनाह, मेरी एक आख़िरी इच्छा है।”
बादशाह ने पूछा –“बोलो बीरबल, तुम्हारी क्या इच्छा है?”
बीरबल मुस्कराए और बोले –“मैंने आपको बहुत कुछ सिखाया, लेकिन एक खास बात रह गई – मोती उगाने की कला।”
“मोती उगाने की कला?” – बादशाह हैरान रह गए।
“अगर तुम सच में ये जानते हो तो तुम्हें मरने नहीं दे सकता! पहले ये सिखाओ!” – अकबर ने हुक्म दिया।
बीरबल ने उन्हीं जलनखोर दरबारियों के घर तुड़वाकर वहाँ खेत बनवाए।
“यही ज़मीन मोती उगाने के लिए सबसे बढ़िया है।” – बीरबल ने कहा।
फिर वहाँ जौ के बीज बो दिए गए।
लोग सोच में पड़ गए – “जौ से मोती?”
बीरबल बोले –“कल सुबह यहाँ असली मोती उगेंगे, और उन्हें वही काट सकता है जो एकदम निर्दोष हो!”
अगले दिन सूरज निकला। ओस की बूँदें जौ के पौधों पर मोती जैसी चमक रही थीं।
बीरबल ने सबको इकट्ठा किया और कहा –“अब इन चमकते मोतियों को वही तोड़े, जिसने ज़िंदगी में कभी कोई गलती न की हो। अगर किसी ने झूठ बोला हो, चोरी की हो या किसी का दिल दुखाया हो — तो ये मोती पानी बनकर गिर पड़ेंगे।”
बीरबल ने मंत्रियों की तरफ देखा –“आप सब तो सबसे सच्चे हैं, आइए... मोती काट लीजिए।”
मंत्रियों के चेहरे उतर गए।
हर किसी को अपनी-अपनी गलती याद आ गई। कोई आगे नहीं आया।
अब बीरबल ने अकबर से कहा –“जहाँपनाह! आप तो सबसे न्यायप्रिय, सच्चे और नेकदिल राजा हैं। आप आइए!”
अकबर ने सिर झुका लिया। उन्हें एहसास हुआ –“मैंने बिना सोचे बीरबल को सज़ा दी, और मेरे ही लोग सबसे ज़्यादा दोषी निकले।”
बादशाह ने तुरंत बीरबल को गले लगा लिया और कहा–“बीरबल, तुम न केवल चतुर हो बल्कि दिल के भी साफ़ हो। हमसे भूल हुई। तुम हमारे सबसे काबिल मंत्री हो।”
बीरबल फिर से अपने पद पर लौट आए। दरबारी भी शर्मिंदा हो गए।
सीख : बुद्धिमानी और सच्चाई सबसे बड़ी ताकत होती है।