सूरज दादा कहाँ गए तुम, काहे ईद का चाँद भए तुम।
घना अँधेरा, काला - काला, दिन निकला पर नहीं उजाला।
कोहरे ने कोहराम मचाया, पारा गिर कर नीचे आया।
काले बादल जिया डराते, हॉरर-शो सा दृश्य दिखाते।
बर्षा रानी आँख दिखाती, झम झम झम पानी बरसाती।
काले - काले बादल आते, उमड़-घुमड़ कर शोर मचाते।
नन्हीं - नन्हीं बूँद कभी तो, कभी ज़ोर की बारिश लाते।
सर्द हवाएँ, शीत लहर है, बे-मौसम बरसात, कहर है।
*टच मी नॉट * कहे अब पानी, बाहर ना जा कहती नानी।
कट - कट दाँत बजाते बाजा, मौसम अपना बैण्ड बजाता।
सड़क, गली, कुँचे, चौबारे, सब सूने हैं ठंड के मारे।
फुट - पाथी, बेघर, बेचारे, इन सबके तो तुम्हीं सहारे।
अब तो सुन लो, सूरज दादा, कल आने का दे दो वादा।
- आनन्द विश्वास |