साथी, घर-घर आज दिवाली!
फैल गयी दीपों की माला मंदिर-मंदिर में उजियाला, किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली! साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर, किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली! साथी, घर-घर आज दिवाली!
आँख हमारी नभ-मंडल पर, वही हमारा नीलम का घर, दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली! साथी, घर-घर आज दिवाली!
- हरिवंशराय बच्चन
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