हिंदुस्तान की भाषा हिंदी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर्वगुणकारी नागरी ही है। - गोपाललाल खत्री।
कब निकलेगा देश हमारा (काव्य)    Print this  
Author:कुँअर बेचैन

पूछ रहीं सूखी अंतड़ियाँ
चेहरों की चिकनाई से !
कब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!

भइया पच्छिम देस गए हो पुरवइया को भूल गए,
हँसते-गाते आँगन की हर ता- थइया को भूल गए,
रामचरितमानस से घर की चौपइया को भूल गए
भूल गए बूढ़े बापू को, क्यों भइया को भूल गए।

पूछ रही राखी
भाई की बिछुड़ी हुई कलाई से!
कब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!

कब तक रोकेगी दानवता, मानवता के रस्तों को,
कब तक लूटेंगे माली, खुद अपने ही गुलदस्तों को,
और वतन की चिंता होगी किस दिन वतन परस्तों को,
भेजेगी माँ रोज मदरसे, कब तक भूखे बस्तों को।

पूछ रही हैं फटी कमीजें
सूट-बूट और टाई से!
कब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!

होंठों तक आते-आते क्यों मन की बातें लौट गईं,
दुनिया की बातें क्यों देकर दिल को घातें लौट गईं,
आने से पहले ही सुख की सुंदर रातें लौट गई,
दुलहिन के घर आते-आते क्यों बारातें लौट गई।

पूछ रही है लाश दुल्हन की
आँगन की शहनाई से!
कब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!

कब तक फेंकेगी ये दुनिया पत्थर दुखती चोटों पर,
जुल्म करेंगे बड़े लोग ही कब तक अपने छोटों पर,
प्रजातंत्र का नाटक होगा, धर्म, जाति के वोटों पर,
कब तक नाचेगी मजबूरी, पेट की खातिर कोठों पर।

पूछ रही है तन की बिजली
यौवन की अँगड़ाई से!
कब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!

आओ मिलकर अब हम इक ऐसा मौसम तैयार करें,
महल-दुमहले झुकी झोंपड़ी को अब खुद मीनार करें,
निर्धन आँखों ने जो देखे वो सपने साकार करें,
अपनी मिट्टी, अपनी धरती को बढ़ बढ़कर प्यार करें।
पश्चिम की आँधी को रोकें
अब अपनी पुरवाई से !
तब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!

-कुँअर बेचैन

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें