बहुत पुरानी बात है। उस समय कंगारू के पेट पर थैली नहीं होती थी। विज्ञान इस बारे में जो भी कहे लेकिन इस बारे में ऑस्ट्रेलिया में एक रोचक लोक-कथा है। बहुत पहले की बात है। एक दिन एक मादा कंगारू अपने बच्चे के साथ जंगल में घूम रही थी। बाल कंगारू पूरी मस्ती में था। वह जंगल में पूरी उछल-कूद कर रहा था।
“दूर मत जाना।" कंगारू माँ ने कहा।
बाल कंगारू रुकने का जैसे नाम ही न ले रहा था। कभी इधर तो कभी उधर, खूब उछल-कूद कर रहा था। कंगारू माँ की नजरें रह-रह कर अपने बच्चे पर जाती कि कहीं बहुत दूर न निकल जाए। ‘यहाँ और जंगली जानवर भी तो हैं और शिकारियों का भी डर रहता है।' यह सोचकर वह सिहर उठती।
तभी उसने एक बूढ़ा जानवर आते हुए देखा। मादा कंगारू उसे बड़े ध्यान से देखने लगी, उस जानवर की त्वचा काफी शुष्क दिखाई पड़ती थी। वह बहुत धीमे-धीमे चल रहा था। शायद वह काफी बूढ़ा था।
मादा कंगारू को उस पर बड़ी दया आई। उसने थोड़ी निकट जाकर पूछा, “आप कैसे हैं?” बूढ़े जानवर ने थोड़ा सतर्क होते हुए कहा, “किसी ने मुझे पुकारा?” मादा कंगारू ने उत्तर दिया, “जी, मैंने आपको बुलाया।"
“तुम कौन हो? कहाँ हो? मुझे दिखाई नहीं देता। मैं देख नहीं पाता हूँ।"
मादा कंगारू ने पूछा, “क्या मैं आपकी कोई मदद करूँ?”
“आजकल सब मुझे नकारा समझने लगे हैं। मैं जैसे अपने परिवार पर भी बोझ बन गया हूँ।"
“आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?” मादा कंगारू ने करुणा से भरी आवाज में पूछा। उसे बूढ़े जानवर पर बहुत दया आ रही थी।
“बस, बुढ़ापे में जीवन कुछ इसी तरह का होता है।"
तभी मादा कंगारू को अपने बच्चे ‘जॉय' का ध्यान आया। उसका बच्चा आसपास कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। "अरे, ये जॉय कहाँ चला गया?"
"जॉय, जॉय।" उसने दो-तीन बार आवाज लगाई।
“क्या हुआ?” बूढ़े जानवर ने पूछा।
“मेरा बेटा ‘जॉय’ कहीं दिखाई नहीं दे रहा। अभी तो यहीं था।" मादा कंगारू चिंतित थी।
“यहीं कहीं खेल रहा होगा। ज़रा ध्यान से देखो।“
“मैं अभी लौटती हूँ।“ कहकर मादा कंगारू पास की झड़ियों की ओर चली गई।
थोड़ी दूर गई तो एक बड़े से पेड़ के नीचे बाल कंगारू ‘जॉय’ मिल गया।
“अरे, जॉय तुम यहाँ हो! मैंने तुम्हें कितना ढूंढा! कितनी बार कहा है, जब भी कहीं जाओ, बताकर जाया करो।“ फिर उसने अपने बच्चे का मासूम चेहरा देखकर थोड़ी सहज होते हुए कहा, “अच्छा चलो। आगे से ध्यान रखना। दूर मत जाना।"
नन्हें कंगारू ने मासूमियत से सिर हिला दिया।
तभी मादा कंगारू ने देखा कि दूर से एक भील उस बूढ़े जानवर पर अपना निशाना साध रहा है। कंगारू सोचने लगी, वह उस बूढ़े जानवर को कैसे बचाए। उस बेचारे को तो दिखाई भी नहीं देता। वह ‘जॉय’ को वहीं घनी झाड़ियों में बिठाकर, “कहीं मत जाना। खतरा है। मैं अभी आती हूँ।" कहकर, उस बूढ़े जानवर की सुरक्षा करने के लिए दूसरी ओर चल दीं।
इधर भील उस जानवर पर अपना निशाना लगाने ही वाला था। मादा दूर से चिल्लाई, “भागो, भागो। शिकारी तुम्हें निशाना बनाए हुए है। जल्दी से कहीं भाग जाओ।" बूढ़ा जानवर जितनी तेजी से हो सका झाड़ियों की ओर भाग गया।
अब भील अपना निशाना मादा कंगारू की ओर साधने लगा। किसी तरह अपनी जान बचाकर मादा कंगारू भाग निकली। फिर उसने देखा की भील वापस लौट गया है। तभी उसने पास में छुपे बूढ़े जानवर की ओर देखा और पूछा, “क्या आप ठीक हैं?” बूढ़े जानवर ने मुसकुरा कर कहा, “हाँ, मैं ठीक हूँ। आपने मेरी जान बचाई, धन्यवाद।"
“ईश्वर का धन्यवाद है कि आप सही सलामत हैं।" मादा कंगारू ने प्रसन्नता से उसकी ओर देखा। आश्चर्य! वह जानवर अपना रूप बदल चुका था। वास्तव में वह कोई जानवर न होकर देवता था। वह तो धरती पर सबसे दयालु जीव की खोज में आया था और अब उसकी खोज पूरी हो चुकी थी। शायद कंगारू ही सबसे दयालु जीव था।
उसने अपने वास्तविक रूप में आकर मादा कंगारू को कोई उपहार देने की इच्छा जताई।
“प्यारे कंगारू, तुम इस धरती के सबसे दयालु जीव हो। मैं धरती के अनेक हिस्सों पर घूमा लेकिन मुझे तुम जितना दयालु कोई और दिखाई नहीं दिया। तुम धन्य हो।“ यह कहकर, देवता फिर बोला, “मैं तुम्हें उपहार स्वरूप एक ऐसी चीज़ देता हूँ, जो तुम्हारे बहुत काम आएगी।“ यह कह कर देवता ने कंगारू के पेट पर एक थैली उत्पन्न कर दी।
“इस थैली में तुम अपने बच्चों को सुरक्षित रख सकोगी।"
मादा कंगारू बहुत खुश हुई लेकिन अगले ही पल बोली, “मेरे बच्चे तो सुरक्षित हो जाएंगे लेकिन अन्य कंगारुओं का क्या?"
मादा कंगारू की इस दयालुता और अन्य जीवों के प्रति उसकी भावना का सम्मान करते हुए, देवता ने सभी कंगारुओं और उनकी आने वाली पीढ़ियों को यह वरदान दे दिया कि उनके पेट पर एक थैली होगी। बस तभी से सभी कंगारुओं के पेट पर यह थैली होती है।
-रोहित कुमार हैप्पी |