पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ। कागज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ।। करें एक के आठ, चल रही आपाधापी । दस हज़ार बताएं, छपें ढाई सौ कापी ।। विज्ञापन दे दो तो, जय-जयकार कराएं। मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज़ छपाएं ।।
2)
कभी मस्तिष्क में उठते प्रश्न विचित्र। पानदान में पान है, इत्रदान में इत्र।। इत्रदान में इत्र सुनें भाषा विज्ञानी। चूहों के पिंजड़े को, कहते चूहेदानी। कह 'काका' इनसान रात-भर सोते रहते। उस परदे को मच्छरदानी क्योकर कहते।।
3)
नगरपालिका के लिए पड़ने लागे वोट। कहीं बोतलें खुल रही, कहीं बट रहे नोट।। कहीं बट रहे नोट, और सब रहे अभागे। वोट गिने तो कम्यूनिस्ट पार्टी थी सबसे आगे।। कामरेड बोले - "प्रस्ताव हमारा धर दो। कल से इसका नाम, 'कम्यूनिसिपल्टी' कर दो।।"
4)
कुत्ता बैठा कार में, मानव मांगे भीख। मिस्टर दुर्जन दे रहे, सज्जनमल को सीख।। सज्जनमल को सीख, दिल्लगी अच्छी खासी। बगुला के बंगले पर, हंसराज चपरासी।। हिंदी को प्रोत्साहन दे, किसका बलबुत्ता। भौंक रहा इंगलिश में, मन्त्री जी का कुत्ता।।
5)
पढ़ना-लिखना व्यर्थ है, दिन-भर खेलो खेल। होते रह दो साल तक, फर्स्ट इयर में फेल ।। फर्स्टइयर में फेल, तेल जुल्फों मे डाला । साइकिल से चल दिए, लगा कमरे का ताला ।। कह ‘काका' कविराय, गेट-कीपर से लड़कर। मुफ्त सिनेमा देख, कोच पर बैठ अकड़कर ।।
6)
प्रोफेसर या प्रिंसिपल, बोलें जब प्रतिकूल। लाठी लेकर तोड दो, मेज़ और स्टूल।। मेज़ और स्टूल, चलाओ ऐसी हाकी। शीशा और किवाड़, बचे नहिं एकहू बाकी ।। कह 'काका' कविराय, भयकर तुमको देता । बन सकते हो इसी तरह, ‘बिगड़े दिल' नेता ।।
- काका हाथरसी |