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विविध, Hindi Miscellaneousइस श्रेणी के अंतर्गत पढ़ें
अनमोल वचन - महात्मा गाँधी |
यहाँ महात्मा गाँधी के कुछ अनमोल वचन संकलित किए गए हैं: |
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गणतंत्र की ऐतिहासिक कहानी - भारत-दर्शन संकलन |
भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ तथा 26 जनवरी 1950 को इसका संविधान प्रभावी हुआ। इस संविधान के अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया। |
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गणतंत्र की पृष्ठभूमि - भारत-दर्शन संकलन |
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर सत्र |
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माओरी कहावतें (31-35) - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
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मोती कैसे बनते हैं? - रोहित कुमार हैप्पी |
जानिए, मोती कैसे बनते हैं
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'ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ’ का विमोचन संपन्न - भारत-दर्शन समाचार |
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प्रवासी भारतीय दिवस पर सिंगापुर से तीन पुस्तकों का विमोचन - भारत-दर्शन समाचार |
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डॉ. पुष्पा भारद्वाज वुड द टेन इनक्रेडिबल पीपल' सूची में - भारत-दर्शन समाचार |
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चाय का चक्कर | व्यंग्य - डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त |
एक दिन मैं और मेरे मित्र, विकास जी, एक सरकारी दफ्तर में गए थे। दफ्तर में पहुंचते ही यह खबर फैल गई कि किसी बड़े आदमी के साथ कोई राजनेता दफ्तर में आया है। खैर, यह खबर जल्द ही बड़े साहब के कानों तक पहुंच गई होगी, जो एक अनुभवी अधिकारी थे। साहब ने अपनी डेली ड्यूटी के दस्तावेजों को पलटते हुए एक पल के लिए सोचा होगा, "अगर कोई राजनेता दफ्तर में आए, तो क्या करना चाहिए?" और फिर, साहब ने सोचा होगा—"उसे चाय जरूर पिलानी चाहिए।" उनके दिमाग में और भी विचार आए होंगे—"अगर उसके साथ कोई अन्य व्यक्ति हो तो उसे भी चाय पिलानी चाहिए।" उन्होंने फिर बड़े बाबू को आदेश दिया, "जब इनका काम खत्म हो जाए, तो उन्हें चाय के लिए ले आइए।" |
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बद अच्छा बदनाम बुरा - बेढब बनारसी |
शेक्सपियर ने बहुत दिन हुए कहा था कि नाम में क्या रखा है। गुलाब को चाहे जिस नामसे पुकारिये सुगंध तो वैसी मीठी होगी। किन्तु वह नहीं जानते थे कि कुछ मनचले लोगों ने उन्हीं के नाटकों को दूसरे लेखक के नाम से कहना आरंभ कर दिया तो तहलका मच गया। तुलसीदास ने तो नाम की अपार महिमा गायी है और कह दिया कि 'कहउं कहा लगि नाम बढ़ाई, राम न सकंहि नाम गुणगाई।' इसलिए ये संसार में जो कुछ किया जाए वह नाम के ही लिये किया जाए तो इसमें आश्चर्य क्या हो सकता है। |
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हिंदी ग़ज़ल की समस्याएं | आलेख - डॉ ज़ियाउर रहमान जाफ़री |
हिंदी साहित्य की कई विधाओं का आरंभ आज़ादी के बाद हुआ। नई कहानी और नई कविता का नाम तो इसमें प्रमुख है ही, दलित आदिवासी और स्त्री विमर्स जैसा दौडर भी आज़ादी के बाद ही व्यवस्थित रूप पर हमारे सामने आया। आज़ादी के पूर्व मूल रूप से एक चुनौती थी देश को स्वतंत्र करना, किंतु आज़ादी के बाद युद्ध, अकाल, सांप्रदायिकता बंटवारा, निर्वासन जैसी कई चुनौतियां हमारे सामने आती चली गईं। हमने आज़ादी से जो सपने देखे थे देश उस उम्मीद पर खड़ा नहीं उतर रहा था। इस तरह जब स्थितियां बदलीं तो साहित्य के मूल्य और प्रतिमान भी बदलते चले गए। |
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बच्चों के सर्वांगीण विकास में शैक्षिक गतिविधियों की महत्वपूर्ण भूमिका - डॉ॰ पंडित विनय कुमार |
हमें यह कहने में संकोच नहीं है कि आज बिहार में ही नहीं बल्कि भारत वर्ष में बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जो कुछ प्रयास किया जाना चाहिए वह प्रयास पूरी तरह पर्याप्त नहीं है और उस प्रयास में और भी कुछ जोड़ा जाना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बच्चों के सर्वांगीण विकास पर बल देती है । यद्यपि महत्वपूर्ण शिक्षा वह है जो बच्चों में चरित्र निर्माण में सहयोग प्रदान कर सके। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था कि असली शिक्षा वह है जो बच्चों में चरित्र निर्माण पर बल देती है और उसके साथ उसके रोजी रोजगार में सहायता पहुंचाती है। सच तो यह है कि बच्चों का संसार एक अलग और अंगूठा संसार होता है । बच्चों की दुनिया एक अलग तरह की दुनिया मानी जा सकती है जहां बच्चे अपने अनुभव से खेलते हैं छोटे-छोटे बच्चे जो मिट्टी में घरौंदे बनाते हैं वे छोटे-छोटे बच्चे जो जमीन पर रेखाएं खींचते हैं वे छोटे-छोटे बच्चे जो दीवारों पर मिट्टी के ढेले से कुछ न कुछ चित्रकारी कर रहे होते हैं और वह बच्चे जो अपने से बड़े भाई - बहनों की पुस्तक या उनकी कॉपी को लेकर उसमें आड़ी - तिरछी रेखाएं खींच रहे होते हैं । उनमें भी उनका अनुभव है। उनमें भी उनकी कोई ना कोई कहानी होती है कोई न कोई दुख - सुख है उसमें भी उनका घृणा और प्रेम बसा हुआ है । उन दीवारों पर अंकित रेखाओं में भी उनके मन के भाव इस रूप में गूँथे हुए हैं कि हमें समझने की जरूरत है। आज समय बदल गया है और हमारी शिक्षा पद्धति बाल केंद्रित बन गई है । हम जो कुछ भी बच्चों को पढ़ाते हैं सिखाते हैं । उसमें पहली शर्त यही है कि उस से बच्चों का मनोरंजन हो बच्चों को संबंधित विषय अथवा पाठ में दिलचस्पी रहे और वह अपनी कक्षा में पढ़ाये जाने वाले पाठ को एकाग्रतापूर्वक सुन सकें , सीख सकें और समझ सकें । यह इसलिए भी जरूरी है कि हमें बच्चों के मन के अनुसार उन्हें सही रास्ते पर लाना है चाहे हम बच्चों में भाषा संबंधी विकास की बात करें अथवा गणित संबंधी उनके ज्ञान की बात करें । प्रायः दोनों ही विषयों में बच्चों के मां का जुड़ाव उनकी भावना का जुड़ाव होना चाहिए ।आज समय आ गया है कि हम उन बातों को समझ सकें और अपनी शिक्षा में उसे जगह दे सकें ताकि आगे आने वाली पीढ़ी शिक्षा से भली भांति जुड़ सके । |
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ध्वनि साधना : देवनागरी लिपि का दर्शन - रामा तक्षक |
मेरे और मेरी पत्नी के बीच, भारतीय दर्शन पर बात चल रही थी। इसी बीच मेरी पत्नी ने बताया कि 1985 में जब मैंने एक शिक्षिका के तौर पर, नीदरलैंड के स्कूल में, काम करना शुरू किया तो उस समय मैं प्राथमिक शिक्षा के बच्चों को पढ़ाया करती थी। साथ ही साथ मैं उच्च शिक्षा के लिए भी अध्ययनरत थी। |
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