भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

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सन्दीप तोमर से सुमन युगल की बातचीत - सुमन युगल

'लेखकों को नई ऊर्जा के साथ नए प्रतिमान स्थापित करने की अवश्यकता है।'---सन्दीप तोमर

 
कोयल के कारनामे | रोचक  - रोहित कुमार हैप्पी

कोयल की आवाज इतनी मीठी होती है कि उसे हम विशेषण के रूप में  प्रयोग करते हैं।  यदि किसी व्यक्ति की आवाज़ बेहद सुरीली हो तो उसकी तुलना कोयल से की जाती है, 'क्या कोयल जैसी आवाज़ है!' 

 
बाप दादों की कील | व्यंग्य - केशवचन्द्र वर्मा

हाजी जी ने जब अपना मकान बनवा लिया तो चैन की साँस ली। ऐसा मकान उस शहर में किसी के पास नहीं था। जो देखता वही यह कहता कि ऐसा मकान और किसी ने नहीं बनवाया। हाजी जी ने जब यह देखा तो उन्होंने अपना मकान अच्छे दामों में बेच डालने का निश्चय किया। उनका निश्चय जान कर बहुत-से लोग मकान खरीदने के लिए आने लगे। हाजी जी ने मकान खरीदने वालों के सामने सिर्फ़ एक शर्त रक्खी.... वह सारा मकान देने के लिए तैयार थे बस बात इतनी थी कि एक कमरे में एक कील गाढ़ी हुई थी जिस पर वे अपना अधिकार चाहते थे। बातचीत होते-होते अंततः एक आदमी इसके लिए तैयार हो गया। हाजी साहब एक छोटी-सी कील पर ही तो अपना अधिकार चाहते थे। उस आदमी ने सोचा चलो कोई बात नहीं। मकान अपना रहेगा। एक कील हाजी साहब की ही रहेगी।

 
लिखने और छपने के टोटके! - प्रभात गोस्वामी

रचनाओं के निरंतर अस्वीकृत होने की पीड़ा से त्रस्त लेखकजी को अब किसी पर विश्वास नहीं रहा। हारकर वह फिर से अंधविश्वासों पर यकीन करने को मजबूर हो रहे हैं। खिलाड़ियों से लेकर नेता लोग सब अंधविश्वासों का दामन थामे हुए हैं। आजकल किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल हो गया है! तभी तो लोग फिर से टोने-टोटकों पर भरोसा करने लगे हैं।

 
वे धन्यवाद नहीं ले रहे | व्यंग्य  - धर्मपाल महेंद्र जैन

मैं अपने समय के प्रतिष्ठित होते-होते बच गए व्यंग्यकार के साथ बैठा हूँ। उनका जेनेरिक नाम व्यंका है, ब्रांड नेम बाज़ार में आया नहीं, इसलिए अभी उनका नाम बताने में दम नहीं है।  यह चर्चा मोबाइल पर रिकॉर्ड हो रही है।

 
'अंतहीन' जीवन जीने की कला - डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला

डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के कहानी संग्रह अंतहीन को 12 अविस्मरणीय कहानियों का दस्तावेज़ कहना ठीक है, इससे भी अधिक यदि यह कहा जाए कि यह कहानी संग्रह सांस्कृतिक-बोध और मानवीय-रिश्तों की अद्भुत गाथा है, तो अधिक सटीक होगा। कहानीकार का कवि मन कहानी के साथ-साथ भाषाई-सौंदर्यबोध, उत्तराखंड के सुरम्य प्राकृतिक सुषमा को चित्रित करता चला जाता है। यही कारण है कि वाह! जिंदगी कहानी संग्रह पर चर्चा होने के तुरंत बाद बेचैन कंडियाल जी के द्वारा उपलब्ध कराई गई। इस कहानी संग्रह पर छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरा पर डॉ. विनय पाठक और श्री बी. एल. गौड़ जैसे संतों के समक्ष साहित्य की मंदाकिनी की कल-कल ध्वनि की गूँज न केवल छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में गूँजी अपितु इसका नाद सौंदर्य भारत की सीमा को बेधता हुआ, विदेशी विश्वविद्यालयों को भी आनंदित कर गया।

 
हिन्दी का पुराना और नया साहित्य - यज्ञदत्त शर्मा

मानव-जीवन का समस्याओं के साथ-ही-साथ साहित्य चलता है। जीवन में जिस काल के अंतर्गत जो-जो भावनाएँ रही हैं उन-उन कालों में उन्हीं भाव- नाओं से ओत-प्रोत साहित्य का भी सूजन हुआ है। प्रारम्भ में मानव की कम आवश्यकताएं थीं, कम समस्याएं थीं। इसीलिए साहित्यिक विस्तार का क्षेत्र भी सूक्ष्म था। वीरगाथाकाल में वीर-गाथाएँ लिखी गई, भक्ति-काल में साहित्य का क्षेत्र कुछ और व्यापक हुआ, विकसित हुआ, भक्ति के भेद हुए और अनेकों धाराएँ प्रवाहित हुईं। निर्गुण-भक्ति, प्रेमाश्रयी-शाखा, कृष्ण-भक्ति, राम-भक्ति और अन्त में सब मिलकर श्रृंगार की तरफ़ चल दिये। एक युग-का- युग शृंगारी कविता करते और नायक-नायिकाओं के भेद गिनते हुए व्यतीत हो गया, न समाज ने कोई उन्नति की और न राष्ट्र ने। फिर भला साहित्य में प्रगति कहाँ से आती ! साहित्य अपने उसी सीमित क्षेत्र में उछल-कूद करता हुआ झूठे चमत्कार की ओर प्रवाहित होता चला गया। भक्ति-कालीन रसात्मकता रीति-काल में नष्ट हो गई और वह प्रणाली आज के साहित्य में भी ज्यों-की-त्यों लक्षित है।

 
पुस्तक समीक्षा : विदेश में हिंदी पत्रकारिता - रोहित कुमार हैप्पी

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पुस्तक समीक्षा : सिंगापुर में भारत - रोहित कुमार हैप्पी

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