विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा हृदयग्राही वाक्य। - मन्नन द्विवेदी।

काव्य

जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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पर्यावरण पर दोहे  - शकुंतला अग्रवाल 'शकुन' 

तरुवर हैं सहमे हुए,पंछी सभी उदास।
दाँव लगी है जिन्दगी, दुश्मन बना विकास॥

 
संत कबीरदास के दोहे  - कबीरदास | Kabirdas

संत कबीर के दोहे 

सब धरती कागद करूँ, लेखनि सब बनराय। 
सात समुद की मसि करूँ, गुरु गुन लिखा न जाय॥ 

 
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
आह क्यों घर छोड़ कर मैं यूँ कढ़ी।

 
हफ्तों उनसे... | हज़ल - अल्हड़ बीकानेरी

हफ्तों उनसे मिले हो गए 
विरह में पिलपिले हो गए 

 
वे और तुम | हज़ल - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

मुहब्बत की रियासत में सियासत जब उभर जाये 
प्रिये, तुम ही बताओ जिन्दगी कैसे सुधर जाये? 

 
सांईं की कुण्डलिया - सांईं

सांईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज। 
हरिनाकस्यप कंस को गयउ दुहुन को राज॥ 
गयउ दुहुन को राज बाप बेटा में बिगरी। 
दुश्मन दावागीर हँसे महिमण्डल नगरी॥ 
कह गिरधर कविराय युगन याही चलि आई। 
पिता पुत्र के बैर नफ़ा कहु कौने पाईं॥

 
भारत भूमि - तुलसीदास

भलि भारत भूमि भले कुल जन्मु समाजु सरीरु भलो लहि कै।
करषा तजि कै परुषा बरषा हिम मारुत धाम सदा सहि कै॥
जो भजै भगवानु सयान सोई तुलसी हठ चातकु ज्यों ज्यौं गहि कै।
न तु और सबै बिषबीज बए हर हाटक कामदुहा नहि कै॥

 
श्रद्धांजलि - मैथिलीशरण गुप्त

अरे राम! कैसे हम झेलें,
अपनी लज्जा उसका शोक।
गया हमारे ही पापों से;
अपना राष्ट्र-पिता परलोक!

 
लोहे को पानी कर देना  - सुभद्राकुमारी चौहान

जब जब भारत पर भीर पड़ी, असुरों का अत्याचार बढ़ा;
मानवता का अपमान हुआ, दानवता का परिवार बढ़ा।
तब तब हो करुणा से प्लावित करुणाकर ने अवतार लिया;
बनकर असहायों के सहाय दानव दल का संहार किया।

 
मुहब्बत की जगह | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया

मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं
ज़माने के लिए, रिश्ता चला कर देख लेते हैं

 
भारत माँ की लोरी - देवराज दिनेश

यह कैसा कोलाहल, कैसा कुहराम मचा !
है शोर डालता कौन आज सीमाओं पर ?
यह कौन हठी जो आज उठाना चाह रहा
हिम मंडित प्रहरी अपनी क्षुद्र भुजाओं पर ?

 
हिंदी में | कविता - प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌ | Prabhudyal Shrivastava

लेख लिखा मैंने हिंदी में,
लिखी कहानी हिंदी में
लंदन से वापस आकर फिर,
बोली नानी हिंदी में।

 
बेकाम कविता | हास्य कविता - कुंजबिहारी पांडेय 

मुझसे एक न पूछा-- 
"आप क्या करते हैं?" 
मैंने कहा--"कविता करता हूँ।" 
"कविता तो ठीक है, 
आप काम क्या करते हैं?" 
मुझे लगा, 
कविता करना कोई काम नहीं है। 
कविता वह करता है, 
जिसको कोई काम नहीं है।

- कुंजबिहारी पांडेय 

 
मेरी मधुशाला | कविता  - टीकम चन्दर ढोडरिया 

अनुभव की भट्टी में तपकर,
बनी आज मेरी हाला।
खट्टा-मीठा कड़ा-कसैला,
रस इसमें मैंने डाला।
      मुस्कायेगी कभी अधर पर,
      आँसू कभी बहायेगी।
मन अधीर हो जब भी प्रियवर,
आ जाना तुम मधुशाला।।

 
हर बार ऐसा हुआ है | कविता - रश्मि विभा त्रिपाठी

हर बार ऐसा हुआ है
जब तुम याद आई हो
कुछ और कहने की कोशिश में
कुछ और कह गई हूँ मैं,
बोलते- बोलते हो गई ख़ामोश
या कुछ का कुछ लिख गई
अचानक खो बैठी होश
सबने सोचा— मैं नशे में हूँ
तुम ये क्यों करती हो?
तुम रखकर
मेरे होठों पर अपनी उँगली
मेरा हाथ थामकर क्या ये चाहती हो
कि मेरी रुसवाई हो?

 
मेरी माँ - आर सी यादव

अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर
क्षमा दया की सरिता हो।
गीत ग़ज़ल चौपाई तुम हो
मेरे मन की कविता हो॥

 
कवि कौन?  - कवि राजेश पुरोहित

कोरे कागज को रंगीन कर दे।
ये सिर्फ कवि का काम होता है॥
लफ़्ज़ों से महफ़िल सजाना हो।
ये सब के वश में कहाँ होता है॥
कल्पनाओं का अथाह खजाना।
केवल कवि के ही पास होता है॥
सजीव चित्रण करता है कवि।
उसे प्रकृति से भी प्रेम  होता है॥
विसंगतियों से रूबरू करवाना।
कवि का असली काम होता है॥
बातों ही बातों में हास्य खोजना।
इस कला में माहिर कवि होता है॥
घण्टों साधना करता है कवि देखो।
तभी उसे छन्द का ज्ञान होता है॥
तुलसी रसखान मीरा सा साहसी।
कवि के अलावा यहाँ कौन होता है॥

 
माना, गले से सबको - प्राण शर्मा

माना गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी-किसी को बिठाता है आदमी

 
दुनिया के दिखावे में | ग़ज़ल - ज़फ़रुद्दीन 'ज़फ़र' 

दुनिया के दिखावे में तमाशे में नहीं जाऊं,
आंधियों से दीयों को बचाने में नहीं जाऊं।

 
सहज गीत गाना होता तो | गीत - शंकरलाल द्विवेदी

सहज गीत गाना होता तो, पीड़ा का यह ज्वार न होता।
लय की भाँवर स्वर से पड़तीं, गीत कभी बेज़ार न रोता॥

 
कबीरा खैर मनाए - नसीर परवाज़

अंगारों पर आँसू बोयें इस बस्ती के लोग 
कबीरा खैर मनाए।  
जग के सारे रिश्ते नाते दो अंकों का योग 
कबीरा खैर मनाए।  

 

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