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काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।Article Under This Catagory
साहित्य - प्रताप नारायण मिश्र |
जहाँ न हित-उपदेश कुछ, सो कैसा साहित्य? |
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राखी - नज़ीर अकबराबादी |
चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी |
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राकेश पांडेय की कवितायें - राकेश पांडेय |
दिल्ली में सावन |
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गुरु महिमा दोहे - भारत-दर्शन संकलन |
गुरू महिमा पर दोहे |
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मलूकदास के दोहे - मलूकदास |
भेष फकीरी जे करें, मन नहिं आवै हाथ । |
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टेलीपैथी - अलका सिन्हा |
ऐन उसी वक्त |
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जिंदगी की चादर - अलका सिन्हा |
जिंदगी को जिया मैंने |
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क्षणिकाएँ - कोमल मेहंदीरत्ता |
विडंबना
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तलाश जारी है... - आराधना झा श्रीवास्तव |
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धूप से छाँव की.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन |
धूप से छाँव की कहानी लिख |
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मेरे इस दिल में.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन |
मेरे इस दिल में क्या है क्या नहीं है |
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हिसाब बराबर - दिव्या माथुर |
हम फूलों पर सोए |
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कमलेश भट्ट कमल के हाइकु - कमलेश भट्ट कमल |
कौन मानेगा |
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मनोदशा - कैलाश कल्पित |
वे बुनते हैं सन्नाटे को |
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प्रश्न - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi |
प्रश्न था - " नाम ?" |
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शानदार | क्षणिका - शैलेन्द्र चौहान |
खाना शानदार |
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ढोल, गंवार... - सुरेंद्र शर्मा |
मैंने अपनी पत्नी से कहा -- |
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अच्छे दिन आने वाले हैं - महेंद्र शर्मा |
नई बहू जैसे ही पहुंची ससुराल |
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लेख की माँग - ईश्वरीप्रसाद शर्मा |
सम्पादकजी! नमोनमस्ते, पत्र आपका प्राप्त हुआ। |
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चंद्रशेखर आज़ाद - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
शत्रुओं के प्राण उन्हें देख सूख जाते थे |
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मदन डागा की दो कविताएँ - मदन डागा |
कुर्सी |
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पैसा - डॉ. परमजीत ओबराय |
पैसे के पीछे - |
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गोरख पांडेय की दो कविताएं - गोरख पांडेय |
आँखें देखकर |
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लोग उस बस्ती के यारो | ग़ज़ल - सुरेन्द्र चतुर्वेदी |
लोग उस बस्ती के यारो, इस कदर मोहताज थे |
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संध्या नायर की दो ग़ज़लें - संध्या नायर |
कलम इतनी घिसो |
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ज़ख्म को भरने का दस्तूर होना चाहिए - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र |
इंसानियत को बांटना दूर होना चाहिए |
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उठ बाँध कमर - मौलाना ज़फ़र अली ख़ाँ |
अल्लाह का जो दम भरता है, वो गिरने पर भी उभरता है। |
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झूठी प्रीत - एहसान दानिश |
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत! |
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मैं परदेशी... | गीत - चंद्रप्रकाश वर्मा 'चंद्र' |
ममता में सुकुमार हृदय को कस डाला था, |
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