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काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।इस श्रेणी के अंतर्गत पढ़ें
पर्यावरण पर दोहे - शकुंतला अग्रवाल 'शकुन' |
तरुवर हैं सहमे हुए,पंछी सभी उदास। |
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संत कबीरदास के दोहे - कबीरदास | Kabirdas |
संत कबीर के दोहेसब धरती कागद करूँ, लेखनि सब बनराय। |
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ज्यों निकल कर बादलों की गोद से - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
ज्यों निकल कर बादलों की गोद सेज्यों निकल कर बादलों की गोद से |
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हफ्तों उनसे... | हज़ल - अल्हड़ बीकानेरी |
हफ्तों उनसे मिले हो गए |
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वे और तुम | हज़ल - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
मुहब्बत की रियासत में सियासत जब उभर जाये |
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सांईं की कुण्डलिया - सांईं |
सांईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज। |
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भारत भूमि - तुलसीदास |
भलि भारत भूमि भले कुल जन्मु समाजु सरीरु भलो लहि कै। |
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श्रद्धांजलि - मैथिलीशरण गुप्त |
अरे राम! कैसे हम झेलें, |
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लोहे को पानी कर देना - सुभद्राकुमारी चौहान |
जब जब भारत पर भीर पड़ी, असुरों का अत्याचार बढ़ा; |
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मुहब्बत की जगह | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया |
मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं |
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भारत माँ की लोरी - देवराज दिनेश |
यह कैसा कोलाहल, कैसा कुहराम मचा ! |
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हिंदी में | कविता - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava |
लेख लिखा मैंने हिंदी में, |
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बेकाम कविता | हास्य कविता - कुंजबिहारी पांडेय |
मुझसे एक न पूछा-- |
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मेरी मधुशाला | कविता - टीकम चन्दर ढोडरिया |
अनुभव की भट्टी में तपकर, |
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हर बार ऐसा हुआ है | कविता - रश्मि विभा त्रिपाठी |
हर बार ऐसा हुआ है |
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मेरी माँ - आर सी यादव |
अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर |
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कवि कौन? - कवि राजेश पुरोहित |
कोरे कागज को रंगीन कर दे। |
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माना, गले से सबको - प्राण शर्मा |
माना गले से सबको लगाता है आदमी |
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दुनिया के दिखावे में | ग़ज़ल - ज़फ़रुद्दीन 'ज़फ़र' |
दुनिया के दिखावे में तमाशे में नहीं जाऊं, |
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सहज गीत गाना होता तो | गीत - शंकरलाल द्विवेदी |
सहज गीत गाना होता तो, पीड़ा का यह ज्वार न होता। |
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कबीरा खैर मनाए - नसीर परवाज़ |
अंगारों पर आँसू बोयें इस बस्ती के लोग |
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