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लोक-कथाएं
क्षेत्र विशेष में प्रचलित जनश्रुति आधारित कथाओं को लोक कथा कहा जाता है। ये लोक-कथाएं दंत कथाओं के रूप में एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में प्रचलित होती आई हैं। हमारे देश में और दुनिया में छोटा-बड़ा शायद ही कोई ऐसा हो, जिसे लोक-कथाओं के पढ़ने या सुनने में रूचि न हो। हमारे देहात में अभी भी चौपाल पर गांववासी बड़े ही रोचक ढंग से लोक-कथाएं सुनते-सुनाते हैं। हमने यहाँ भारत के विभिन्न राज्यों में प्रचलित लोक-कथाएं संकलित करने का प्रयास किया है।Article Under This Catagory
धूर्त की प्रीति - आनंदकुमार |
एक नामी कंजूस था। लोग कहते थे कि वह स्वप्न में भी किसी को प्रीति-भोज का निमन्त्रण नहीं देता था। इस बदनामी को दूर करने के लिए एक दिन उसने बड़ा साहस करके एक सीधे-सादे सज्जन को अपने यहां खाने का न्योता दिया। सज्जन ने आनाकानी की। तब कंजूस ने कहा--आप यह न समझें कि मैं खिलाने-पिलाने में किसी तरह की कंजूसी करूंगा। मैं अपने पुरखों की कसम खाकर कहता हूं कि जो बढ़िया से बढ़िया चीज मिलेगी, वही आपके सामने रखूंगा। आप अवश्य पधारें धर्मावतार ! |
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अमर बेल की चोरी - प्रह्लाद रामशरण |
बहुत दिन हुए, बेबीलोनिया में एरीच नाम का एक नगर था। जीलगामेश वहां का राजा था। उसने नगर के चारों ओर एक बड़ी ऊंची दीवार खड़ी की थी और उसमें एक आलीशान मन्दिर भी बनवाया था। |
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