हिंदी का पौधा दक्षिणवालों ने त्याग से सींचा है। - शंकरराव कप्पीकेरी

व्यंग्य

हिंदी व्यंग्य. Hindi Satire.

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चाय का चक्कर | व्यंग्य - डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

एक दिन मैं और मेरे मित्र, विकास जी, एक सरकारी दफ्तर में गए थे। दफ्तर में पहुंचते ही यह खबर फैल गई कि किसी बड़े आदमी के साथ कोई राजनेता दफ्तर में आया है। खैर, यह खबर जल्द ही बड़े साहब के कानों तक पहुंच गई होगी, जो एक अनुभवी अधिकारी थे। साहब ने अपनी डेली ड्यूटी के दस्तावेजों को पलटते हुए एक पल के लिए सोचा होगा, "अगर कोई राजनेता दफ्तर में आए, तो क्या करना चाहिए?" और फिर, साहब ने सोचा होगा—"उसे चाय जरूर पिलानी चाहिए।" उनके दिमाग में और भी विचार आए होंगे—"अगर उसके साथ कोई अन्य व्यक्ति हो तो उसे भी चाय पिलानी चाहिए।" उन्होंने फिर बड़े बाबू को आदेश दिया, "जब इनका काम खत्म हो जाए, तो उन्हें चाय के लिए ले आइए।"

 
बद अच्छा बदनाम बुरा  - बेढब बनारसी 

शेक्सपियर ने बहुत दिन हुए कहा था कि नाम में क्या रखा है। गुलाब को चाहे जिस नामसे पुकारिये सुगंध तो वैसी मीठी होगी। किन्तु वह नहीं जानते थे कि कुछ मनचले लोगों ने उन्हीं के नाटकों को दूसरे लेखक के नाम से कहना आरंभ कर दिया तो तहलका मच गया। तुलसीदास ने तो नाम की अपार महिमा गायी है और कह दिया कि 'कहउं कहा लगि नाम बढ़ाई, राम न सकंहि नाम गुणगाई।' इसलिए ये संसार में जो कुछ किया जाए वह नाम के ही लिये किया जाए तो इसमें आश्चर्य क्या हो सकता है। 

 

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