मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। - महात्मा गांधी।

अमर बेल की चोरी (कथा-कहानी)

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Author: प्रह्लाद रामशरण

बहुत दिन हुए, बेबीलोनिया में एरीच नाम का एक नगर था। जीलगामेश वहां का राजा था। उसने नगर के चारों ओर एक बड़ी ऊंची दीवार खड़ी की थी और उसमें एक आलीशान मन्दिर भी बनवाया था।

जीलगामेश अत्यन्त ही रूपवान व्यक्ति था। इसके साथ-साथ उसके शरीर में अपार शक्ति थी। इसीलिए नगर की प्रजा उससे हमेशा भयभीत रहती थी। वे भगवान् से प्रार्थना करते रहते थे कि उनको अभयदान दिया जाए। 

उनकी प्रार्थना सुनकर देवताओं को दया आई। उन्होंने अनकीदू नाम के एक आदमी को जन्म देकर एरीच में भेजा। उन्होंने सोचा, अनकीदू जीलगामेश के समान ही बलशाली होगा और वह उसको सम्भाल कर नगरवासियों को अभयदान प्रदान करेगा।

इस प्रकार अनकीदू एरीच आया और जीलगामेश के साथ उसकी लड़ाई होने लगी। काफी देर तक दोनों योद्धाओं की लड़ाई होती रही, परन्तु अन्त में जीत हुई जीलगामेश की लेकिन अनकीदू का शौर्य देखकर जीलगामेश बहुत प्रसन्न हुआ। इसीलिए जब लड़ाई खत्म हुई तब दोनों मित्र बन गये और भविष्य में आपस में लड़ाई नहीं करने की प्रतिज्ञा कर ली। 

इसके बाद दोनों प्रतापी मित्र साहसपूर्ण कार्य करने निकले। वे एरीच से काफी दूर निकल गये और सरों के जंगल में पहुंच कर, उसके रखवाले को, जो एक भयानक दैत्य था, मार डाला और वहां की बहुत-सी लकड़ियों को काट-काटकर अपने नगर में लाते रहे।  

किन्तु जीलगामेश और अनकीटू की सफलता ने अन्यों के हृदय में प्रेम अथवा घृणा की भावना उत्पन्न कर दी थी। इसीलिए एरीच की नगर-रक्षिका इत्सर ने जीलगामेश के साथ शादी करनी चाही। उसने शादी का प्रस्ताव भी भेजा, परन्तु जीलगामेश ने उसे अस्वीकार कर दिया। 

इस पर इत्सर को बहुत ठेस लगी। उसने देवताओं से प्रार्थना की कि वे एक जंगली बैल को एरीच भेजें, जो नगर को तहस-नहस कर सकता था। देवताओं ने उसकी पुकार सुन ली और उन्होंने एक अत्यन्त शक्तिशाली जंगली बैल को एरीच में भेज दिया। बैल आया और उसने नगर में तोड़-फोड़ शुरू कर दी परन्तु जीलगामेश और अनकीदू ने मिलकर उस जंगली बैल को भी जान से मार डाला। अब तो एरीच की प्रजा खुशियां मनाने लगी परन्तु देवताओं द्वारा भेजे गये उस पवित्र बैल के मरते ही दोनों योद्धाओं का पतन शुरू हो गया। देवताओं ने अनकीदू को शाप दिया, और वह उसी दिन से बीमार हो गया और कुछ ही दिनों में मर गया। जीलगामेश ने अपने परम मित्र को मरते देखा तो स्वयं डर-सा गया। मित्र की मृत्यु पर वह बहुत रोया। उसके अन्तिम क्रियाकर्म के बाद उसने अपने शिल्पकारों को आदेश दिया कि वे सोने और हीरों की अनकीदू की एक विशाल मूर्ति बनाएँ। 

इसके बाद जीलगामेश सोचने लगा, मृत्यु कितनी बुरी होती है, जो दो परम मित्रों को भी अलग-थलग कर सकती है। क्या इससे बचना सम्भव नहीं है? उसे पहले से मालूम था कि यूनान में नोवा नाम का एक आदमी रहता है जिसे अमरता प्राप्त हो चुकी है। अब वह उसकी खोज में निकल पड़ा। 

इसके लिए उसे बहुत लम्बी यात्रा करनी पड़ी। रास्ते में बड़े-बड़े पर्वतों को लांघा। एकाध बार उसे बहुत तेज तूफान के बीच से गुजरना पड़ा। जंगलों में जाते समय जंगली जानवरों के मध्य से भी निकलना पड़ा। इन सब कठिनाइयों के बावजूद उसे कई-कई दिनों तक भूखे-प्यासे रहना पड़ा। अन्त में वह नोवा के स्थान पर पहुंच गया। 

उसने इस बारे में नोवा से बातचीत की। इसी व्यक्ति ने जल-प्लावन के समय संसार के एक जोड़ी जीवों को बचाया था और इसीलिए उसे अमरता प्राप्त हुई थी परन्तु नोवा अमरता प्राप्त करने का कोई रास्ता नहीं बता सका। 

उसने जीलगामेश को बताया कि एक बार भगवान् एनील ने संसार को जलमग्न करके उसे डुबो देना चाहा, क्योंकि पृथ्वी के कोलाहल से उसकी नींद भंग हो रही थी। एहा नाम के देव ने नोवा को यह सूचना दे दी और उसने उसे यह भी आदेश दिया कि वह एक बड़ी नाव बना कर उसमें हर जीवधारी की एक-एक जोड़ी को उसमें रख ले। नोवा ने ऐसा ही किया। जब संसार जलमग्न हो गया तब नोवा अपनी पत्नी और जीवों की जोड़ी के साथ उस नाव में चला गया। इस प्रकार जब बाढ़ शांत हुई, तब एहा ने भगवान् एनील को शांत किया और नोवा और उसकी पत्नी को अमरता प्रदान करवाई, क्योंकि जल-प्लावन के समय पति-पत्नी ने ही पृथ्वी के जीवों की रक्षा की थी। अब जीलगामेश नोवा के घर से हताश होकर लौटने ही वाला था कि उसकी पत्नी को उस पर दया आ गई। उसने जीलगामेश को बताया कि समुद्र में एक प्रकार की वनस्पति पायी जाती है जिसका सेवन करने से शरीर में हमेशा यौवनात्रस्था बनी रहती है।

जीलगामेश उसकी खोज में समुद्र की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने अपने पैरों में एक भारी पत्थर बांधा और समुद्र में डुबकी लगा दी। गहरे समुद्र में उसे वह वनस्पति मिल गई। वह उसे लेकर खुशी-खुशी ऊपर आया। उसने सोचा कि वह अपने नगर में चलकर इसे खायेगा और अपने नगरवासियों को भी खिलायेगा परन्तु जब वह समुद्र में नहा रहा था तब एक सांप उस वनस्पति को चुराकर भाग खड़ा हुआ। इस प्रकार जीलगामेश की आशा निराशा में बदल गयी और वह भारी मन से एरीच लौटा। अब उसे विश्वास हो गया कि मृत्यु जो सबको खा जाती है, उससे किसी को भी बचाया नहीं जा सकता ।

 -प्रह्लाद रामशरण

[बेबीलोन की लोक-कथा]

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