तुम्हारी याद में खुद को बिसारे बैठे हैं।
तुम्हारी मेज पर टॅगरी पसारे बैठे हैं।
गया था शाम को मिलने मैं पार्क में मिस से,
वहाँ पर देखा कि वालिद हमारे बैठे हैं !!
जरा सा रूप का दर्शन तो दे दो आँखों को,
बहुत दिनों से ये भूखे बेचारे बैठे हैं।
ये काले बाल औ' इनमें गुँथे हुए मोती,
ये राजहंस क्या जमुना किनारे बैठे हैं!
गया जो रात बिता घर तो बोल उठे अब्बा,
इधर तो आओ हम जूते उतारे बैठे हैं!
-कवि चोंच