अभी न होगा मेरा अंत अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसंत- अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात, डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात। मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर फेरूँ गा निद्रित कलियों पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, द्वार दिखा दूँगा फिर उनको। हैं मेरे वे जहाँ अनंत- अभी न होगा मेरा अंत।