इक अनजाने देश में जब भी, मैं चुप हो रह जाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ| शुभ्र हिमालय सर हो मेरा, सीना बन जाता विंध्याचल| नीलगिरी घुटने बन जाते, पैर तले तब नीला सागर| दाएँ में कच्छ को भर लेता, बाएँ मिजो भर जाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ| श्वासों में तब तेरा समीरण, धमनी में तेरा ही नद्जल| आँखों में आकाश हो तेरा, कानों में गाती फिर कोयल| रोम मेरे पादप जाते, वन बन कर सज जाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ| स्मृति में मैं सब भर लेता, तेरी थाती महिमा गौरव| संत तपस्वी त्यागी ज्ञानी, जिनसे जग में तेरा सौरभ| मैं अपने मन श्रद्धा भरकर, हरपल शीश नवाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ|
-विजय कुमार सिंह ऑस्ट्रेलिया |