घास में होता विटामिन गाय, भेड़ें, घोड़े; घास खाकर जीते, उनके बावर्ची हैं थोड़े!
कहते है अनुकूल बाबू : "आदत गलत लगा दी! कुछ दिन खाओ घास, पेट खुद हो जाएगा आदी-- व्यर्थ अनाज की खेती, कोई खेत न जोते-गोड़े!"
घरनी गुहराती रह जाती, वह निकल पड़ते हैं चरने, ठुकराकर चल देते, जब वह पैरों को लगती है धरने-- मानव-हित का जोश, भला वह अपना हट क्यों छोड़ें!
दो दिन भी ना हुए थे, जब वह छोड़ गए यह लोक ही, बेधे हैं विज्ञान-ह्रदय को अभी यह महाशोक ही : जीते तो प्रमाण के पथ में बचते कहीं न रोड़े!
- रबीन्द्रनाथ टैगोर [रवीन्द्रनाथ का बाल साहित्य, अनुवाद : युगजीत नवलपुरी, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली] |