सबके अपने-अपने ग़म कुछ के ज़्यादा, कुछ के कम
दिल पे ऐसी गुज़री है आँख भरीं, पलकें हैं नम
अब के भी तुम न आए बीत गए कितने मौसम
तारा कोई टूटा है फिर से है चश्मे पुरनम
कोई तो बादल बरसे बन जाए दर्दे मरहम
कुछ ऐसी भी बात करो मिल जाए लुत्फ़-ए-पैहम
दिल की दिल से राह बने कुछ ऐसा भी हो आलम
- रेखा राजवंशी ऑस्ट्रेलिया |