जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल  (काव्य)    Print this  
Author:भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में
ईश के दर पे रख दे सर को, क्यूँ तू पड़े झमेले में

नाखूनों की बाड़ लगी है,उगते जहाँ विरोध बहुत
मजबूती से कलम पकड़ ले, खो मत जाना रेले में

खुद को ना भगवान समझ तू , माटी का इक पुतला है
इक दिन यूँ ही मिट जाएगा, जाना वहाँ अकेले में

क्यूँ तू इतना उलझ रहा है,होड़ लगाकर औरों से
बाजी जिनके हाथ लगी है, जीते वही हैं खेले में

खुद की तू पहचान बना ले, सबसे रहकर जरा अलग
वरना कितना भी महँगा हो बिक जाता है धेले में

-डॉ० भावना कुँअर
 सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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