भाइयो और बहनो यह दिन डूब रहा है इस डूबते हुए दिन पर दो मिनट का मौन
जाते हुए पक्षी पर रुके हुए जल पर झिरती हुई रात पर दो मिनट का मौन
जो है उस पर जो नहीं है उस पर जो हो सकता था उस पर दो मिनट का मौन
गिरे हुए छिलके पर टूटी हुई घास पर हर योजना पर हर विकास पर दो मिनट का मौन
इस महान शताब्दी पर महान शताब्दी के महान इरादों पर और महान वादों पर दो मिनट का मौन
भाइयो और बहनो इस महान विशेषण पर दो मिनट का मौन
- केदारनाथ सिंह |