इसक अलाह की जाति है, इसक अलाह का अंग। इसक अलाह औजूद है, इसक अलाह का रंग।।
घीव दूध में रमि रह्या सबही ठौर। दादू बकता बहुत है, मथि काढैं ते और।।
कहैं लखैं सो मानवी, सैन लखै सो साध। मन की लखै सु देवता, दादू अगम अगाध।।
आसिक मासूक ह्वै गया, इसक कहावै सोइ। दादू उस मासूक का, अल्लाह आसिक होर्इ।।
मिश्री माँ है मिलि करि, मोल बिकाना बाँस। यों दादू महिंमा भया, पार प्रह्म मिलि हंस।।
केते पारिख पचि मुए, कीमति कहीं न जार्इ। दादू सब हैरान है, गुनें का गुण खार्इ।।
माया मैली गुण भर्इ, धरि धरि उज्जवल नाँव। दादू मोहे सबन को, सुर नर सबहीं ठाँव।।
दादू ना हम हिन्दू होहिगे, ना हम मुसलमान। षट दर्शन में हम नहीं, हम राते रहिमान।।
इस कलि केते ह्वै गये, हिन्दू मुसलमान। दादू साची बंदगी, झूठा सब अभिमान।।
दादू केर्इ दौड़े द्वारिका, केर्इ कासी जाहिं। केर्इ मथुरा की चलैं, साहिब घरहि माँहि।।
अंतर गति और कछू, मुख रसना कुछ और। दादू करनी और कछु, तिनकौ नाहीं ठौर।।
काला मुँह करि करद का, दिल तें दूरि विचार। सब सूरति सुबहान की, मुल्ला मुग्ध न मार।।
दादू निदक बपुरा जिनि मरै, पर उपकारी सार्इ। हमकूँ करता ऊजला, आपण मैला होर्इ।।
सांचा सबद कबीर का मीठा लागैं मोहि। दादू सुनता परम सुख, केता आनन्द होहि।।
- दादू दयाल |