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छँटने लगे हैं बादलधुंध होने लगी कम,नई सुबह की है आहटबदलने लगा मौसम। दिखने लगा रास्तामिटने लगा है भ्रम,जीवन की घोर बाधाएँदृढ़ता के सामनेपड़ने लगी हैं कम। प्रकृति के साथ-साथजीवन का भीबदलने लगा जीवन।
- रमेश पोखरियाल 'निशंक' [संघर्ष जारी है]
Bharat-Darshan, Hindi literary magazine from New Zealand
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