यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
किसी के आँसुओं पर | ग़ज़ल  (काव्य)    Print this  
Author:भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

किसी के आँसुओं पर, ख़्वाब का घर बन नहीं सकता
भरी बरसात में फिर, शामियाना तन नहीं सकता

दुआओं का अगर हो हाथ सर पर तो भला डर क्या
वो जो खारा समंदर है भला क्यों छन नहीं सकता

भले हालात ने उसको, बना डाला हो आतंकी
कि माँ की कोख से तो लाल, ऐसा जन नहीं सकता

लबालब हो गरल से गर, भला फिर भी है क्यूँ डरना
कुचल दोगे समय से गर, उठा वो फन नहीं सकता

ना हीरे हैं ना मोती हैं, भले कमज़ोर दिखती हूँ
क़लम ताकत मेरी,कोई,चुरा ये धन नहीं सकता

अगर बारूद फैला हो,हमारे घर के आँगन में
वहाँ होली,दीवाली,ईद कुछ भी मन नहीं सकता

-डॉ० भावना कुँअर
 सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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