बाबा, मन की आँखें खोल! दुनिया क्या है खेल-तमाशा, चार दिनों की झूठी आशा, पल में तोला, पल में माशा, ज्ञान-तराजू लेके हाथ में--- तोल सके तो तोल। बाबा, मनकी आँखें खोल!
झूठे हैं सब दुनियावाले, तन के उजले मनके काले, इनसे अपना आप बचा ले, रीत कहाँ की प्रीत कहाँ की--- कैसा प्रेम-किलोल। बाबा, मनकी आँखें खोल!
नींद में माल गँवा बैठेगा, मन की जोत बुझा बैठेगा, अपना आप लुटा बैठेगा, दो दिन की दुनिया में प्यारे-- पल पल है अनमोल। बाबा, मनकी आँखें खोल!
मतलब की यह दुनियादारी, मतलब के सारे संसारी, तेरा जग में को हितकारी? तन-मन का सब ज़ोर लगाकर--- नाम हरी का बोल। बाबा, मनकी आँखें खोल!
-सुदर्शन |