डंकी के ऊपर चढ़ बैठा, जम्प लगाकर मंकी, लाल। ढेंचूँ - ढेंचूँ करता डंकी, उसका हाल हुआ बेहाल।
पूँछ पकड़ता कभी खींचता, कभी पकड़कर खींचे कान। कैसी अज़ब मुसीबत आई, डंकी हुआ बहुत हैरान।
बड़े जोर से डंकी बोला, ढेंचूँ - ढेंचूँ , ढेंचूँ - ढेंचूँ। खों - खों करके मंकी पूछे, किसको खेंचूँ, कितना खेंचूँ।
डंकी जी ने सोची युक्ति, लोट लगाकर जड़ी दुलत्ती, खीं-खीं करता मंकी भागा, टूट गई उसकी बत्तीसी।
-आनन्द विश्वास
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