भारत-दर्शन :: इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
यह घाट वही जिस पर हँसकर,वह कभी नहाती थी धँसकर,आँखें रह जाती थीं फँसकर,कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,फिर भी अपने में रहती थी,सबकी सुनती थी, सहती थी,देती थी सबके दाँव, बंधु!
- निराला
Bharat-Darshan, Hindi literary magazine from New Zealand
भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?
यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें
इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें