मेरी भाषा में तोते भी राम-राम जब कहते हैं, मेरे रोम-रोम से मानो सुधा-स्रोत तब बहते हैं। सब कुछ छूट जाए, मैं अपनी भाषा; कभी न छोडूँगा। वह मेरी माता है उससे नाता कैसे तोडूंगा।। कभी अकेला भी हूँगा मैं तो भी सोच न लाऊँगा, अपनी भाषा में अपनों के गीत वहां भी गाऊँगा। मुझे एक संगिनी वहाँ भी अनायास मिल जावेगी, मेरे साथ प्रतिध्वनि देगी कली-कली खिल जावेगी।। मेरा दुर्लभ देश आज यदि अवनति से आक्रान्त हुआ, अंधकार में मार्ग भूल कर भटक रहा है भ्रांत हुआ। तो भी भय की बात नहीं है भाषा पार लगावेगी, अपने मधुर स्निग्ध, नाद से उन्नत भाव जगावेगी।
- मैथिलीशरण गुप्त
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