यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद। 

पीपल के पत्तों पर | गीत  (काव्य)    Print this  
Author:नागार्जुन | Nagarjuna

पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े, बोतल के टुकड़ों पर---
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्ज़ी पर उछल रही चाँदनी।

आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी--
अब मगर, किस कदर, सँभल रही चाँदनी
वो देखो, सामने--
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी।

- नागार्जुन
[श्रेष्ठ हिन्दी गीत संचयन]

 

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