साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
जीवन - संजय उवाच  (कथा-कहानी)    Print this  
Author:संजय भारद्वाज

भयमिश्रित एक चुटकुला सुनाता हूँ। अँधेरा हो चुका था। राह भटके किसी पथिक ने श्मशान की दीवार पर बैठे व्यक्ति से पूछा,' फलां गाँव के लिए रास्ता किस ओर से जाता है?' उस व्यक्ति ने कहा, 'मुझे क्या पता? मुझे तो गुजरे 200 साल बीत चुके।'

पथिक पर क्या बीती होगी, यह तो वही जाने। अलबत्ता यह घटनाक्रम किसी को डरा सकता है, चुटकुला है सो हँसा भी सकता है पर महत्वपूर्ण है कि डरने और हँसने से आगे चिंतन की भूमि भी खड़ी कर सकता है। चिंतन इस बात पर कि जो जीवन तुम बिता रहे हो, वह जीना है या गुजरना है?

अधिकांश लोग अपनी जीवनशैली, अपनी दैनिकता से खुश नहीं होते। वे परिवर्तन जानते हैं पर परिवर्तित नहीं होते। पशु जानता नहीं सो करता नहीं। मनुष्य जानता है पर करता नहीं।

''आपकी रुचि कौनसे क्षेत्र में हैं?''...''मैं नृत्य करती थी। नृत्य मेरा जीवन था पर ससुराल में इसे हेय दृष्टि से देखा जाता था, तो....'', "शादी से पहले मैं पत्र-पत्रिकाओं में लिखती थी। पति को यह पसंद नहीं था सो....", "मैं तो स्पोर्ट्स के लिए बना था पर....", "घुमक्कड़ी बहुत पसंद है। अब व्यापार में हूँ। बंध गया हूँ....।"

टू व्हीलर पर जब सवारी करते हैं तो अलग ही आनंद आता है। कई बार लगता है मानो हवा में उड़ रहे हैं। यही टू व्हीलर रास्ते में पंक्चर हो जाये और ढोकर लाना पड़े तो बोझ लगता है।

जीवन ऐसा ही है। जीवन की सवारी कर हवा में उड़ोगे तो आसमान भी पथ पर उतर आया अनुभव होगा। जीवन को ढोने की आदत डाल लोगे तो ढोना और रोना, दोनों समानार्थी लगने लगेंगे।

मनोविज्ञान एक प्रयोग है। हाथी के पैर में चार रोज नियमित रूप से रात को बेड़ी डालो, सुबह खोल दो। पाँचवें दिन बेड़ी डालने का ढोंग भर करो। हाथी रोज की तरह खुद को बेड़ी में बंधा हुआ ही अनुभव करेगा। आदमी बेड़ी के इसी ढोंग का शिकार है।

आमूल परिवर्तन का अवसर हरेक को नहीं मिलता। जहाँ है वहाँ उन स्थितियों को अपने अनुकूल करने का अवसर सबको मिलता है। उस अवसर का बोध और सदुपयोग तुम्हारे हाथ में है।

सुख यदि धन से मिलता तो मूसलाधार बरसात में भागते- दौड़ते, उछलते-कूदते, नहाते, झोपड़ियों में रहने वाले नंगधड़ंग बच्चों के चेहरे पर आनंद नहीं नाचता और कार में बंद शीशों में बैठा बच्चा उदास नहीं दिखता।

शीशा नीचे कर बारिश का आनंद लेने का बटन तुम्हारे ही हाथ में है। विचार करो, जी रहे हो या गुजार रहे हो? बचे समय में कुछ कर गुजरोगे या यूँ ही गुजर जाओगे?

-संजय भारद्वाज
रात्रि 11:35, 25 जुलाई 2018

 

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