खिड़की दरवाजे लोहे के बना बोल्ट कर लिए हैं मैंने कोई कण धूल-सा आंखों में ना चुभ जाए कहींl मेरा दिल मोम सा पिघल न जाए कहींl बिस्तर पर भी चप्पल उतारने से कतराती हूँ मैं कोई फूल कांटा बनकर ना चुभ जाए कहींl मेरा दिल मोम सा पिघल ना जाए कहींl अंगुलियों में भी सुई लेकर कपड़े सिलने से घबराती हूँ मैं कोई याद जख्म बन ना छिल जाए कहींl मेरा दिल मोम सा पिघल ना जाए कहींl
-डॉ॰ सुनीता शर्मा ऑकलैंड, न्यूज़ीलैंड ई-मेल: adorable_sunita@hotmail.com |