जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें (काव्य)    Print this  
Author:दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar

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