निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं:
आज भी खड़ी वो... तोडती पत्थर, दिखी थी आपको, क्या पता था, टूटेगा, और क्या क्या ? कविवर, क्या कहूँ, वो दिखी थी रास्ते में आपको, आज, जो पढ़ता है, चला जाता है, बस उसी रास्ते में । जिस कसक ने, लेखनी चलाई थी, उस दिन की, वो कसक तो, आज भी, करती हैं विवश। अफ़सोस, पर आज भी, तोडती हैं पत्थर, वो खड़ी, उसी रास्ते में । पसीने से, लथपथ रूप उसका, आज दया नहीं, लोभ पैदा करता हैं । वो तब भी, मजबूर थी, आज भी, है बेबस, फरक... बस इतना है, वो कल, दिखी थी आपको, आज, दिखती है सबको।
- सपना सिंह ( सोनश्री )
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Poem by Sapana Singh |