यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
कभी गिरमिट की आई गुलामी (काव्य)    Print this  
Author:जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी

उस समय फीज़ी में तख्तापलट का समय था। फीज़ी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जोगिन्द्र सिंह कंवल फीज़ी की राजनैतिक दशा और फीज़ी के भविष्य को लेकर चिंतित थे, तभी तो उनकी कलम बोल उठी:

कभी गिरमिट की आई गुलामी
कभी बाढ़ों ने मार दिया
कभी रम्बूका कू कर बैठा
कभी स्पेट ने वार किया।

- जोगिन्द्र सिंह कंवल

[ भारत-दर्शन सितंबर-अक्टूबर २००० ]

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