गर धरती पर इतना प्यारा, बच्चों का संसार न होता !
बच्चे अगर नहीं होते तो, घर-घर में वीरानी होती । दिल सबका छू लेनेवाली , नहीं तोतली बानी होती । गली-गली में खेल-खिलौनों, का, भी कारोबार न होता ।। गर धरती पर इतना प्यारा, बच्चों का संसार न होता !
बात-बात में तुनकमिजाजी, जिद्द-शरारत करता कौन ? बातें मनवाने की खातिर , घर वालों से लड़ता कौन ? धक्का-मुक्की ,मानमनौवल, झूठमूठ मनुहार न होता ।। गर धरती पर इतना प्यारा, बच्चों का संसार न होता !
माँ की चोटी खींचखींचकर, दिनभर उसे सताता कौन ? दादी का चश्मा,दादा की , छतरी-छड़ी छुपाता कौन ? उन दोनों की लाठी बनने - को कोई तैयार न होता ।। गर धरती पर इतना प्यारा, बच्चों का संसार न होता !
अपनी बालकलाओं से गर, कान्हा जग को नहीं रिझाते। तो शायद ही सूरदास जी , वात्सल्य -सम्म्राट कहाते ।। छेड़ सके जो तान सुरीली , वीणा में वह तार न होता ।। गर धरती पर इतना प्यारा, बच्चों का संसार न होता !
बच्चों की नटखट लीलाएँ , जिद्द-शरारत लगतीं प्यारी। बिन बच्चों के कैसी दुनिया, जहाँ नहीं उनकी किलकारी। स्वर्ग-सरीखा सुंदर धरती- का, सपना साकार न होता । गर धरती पर इतना प्यारा, बच्चों का संसार न होता !
- डॉ. शम्भुनाथ तिवारी एसोशिएट प्रोफेसर हिंदी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़(भारत) संपर्क-09457436464 ई-मेल: sn.tiwari09@gmail.com
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