दीन दुखी मज़दूरों को लेकर था जिस वक्त जहाज सिधारा चीख पड़े नर नारी, लगी बहने नयनों से विदा-जल-धारा भारत देश रहा छूट अब मिलेगा इन्हें कहीं और सहारा फीजी में आये तो बोल उठे सब आज से है यह देश हमारा
गिरमिट शर्त के नीचे उन्हें करना जो पड़ा वह काम कड़ा था मंगल था लहराने लगा जहां जंगल ही सब ओर खड़ा था जीवन घातक कोठरी में करना हर निवास पड़ा था मौत से जूझ गये ये बहादुर साहस खूब था जोश बड़ा था
कोई रामायण बाँच रहा कोई लेकर सत्यनारायण आया खूब किया उसका सम्मान कोई अनजान जो आँगन आया गिरमिट वालों के साथ था मौसम रंग जमा लिया जो मन आया खून बहाये तो फागुन आया जो आंसू बहाये तो सावन आया
खून पसीना बहाकर भी ये सभी दुख दर्द को भूल गये थे एक दवा थी कि लेकर ये निज भारत भूमि की धूल गये थे किंतु कभी अपमान हुआ तो ये धर्म ही के अनुकूल गये थे माँ-बहनों की बचाने को इज्जत सैंकड़ों फाँसी पे झूल गये थे ।
- कमला प्रसाद मिश्र |