हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। - स्वामी दयानंद।
एक पगले नास्तिक की प्रार्थना  (काव्य)    Print this  
Author:राजेश्वर वशिष्ठ

मुझे क्षमा करना ईश्वर
मुझे नहीं मालूम कि तुम हो या नहीं
कितने ही धर्मग्रंथों में
कितनी ही आकृतियों और वेशभूषाओं में
नज़र आते हो तुम
यहाँ तक कि कुछ का कहना है
नहीं है तुम्हारा शरीर

अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ ईश्वर
अगर तुम्हारा शरीर ही नहीं है
तो तुम कर ही नहीं पाओगे प्रेम
और अगर तुम्हारा शरीर है
तो बहुत सारे लोग तुम्हें करेंगे प्रेम
वे तुम्हें लेकर महानता से भरी
कहानियाँ गढ़ लेंगे
और कहेंगे कि तुम
उनके स्वप्न पूरे करते हो

पर ईश्वर, तुम फिर भी
किसी से प्रेम नहीं कर पाओगे
क्योंकि प्रेम के लिए
शरीर में स्पंदन भी ज़रूरी है
और कोई धर्म अपने ईश्वर के शरीर में
स्पंदन बर्दाश्त नहीं कर सकता
उन्हें तो सलीब पर लटका
बाँसुरी बजाता
या निराकार ईश्वर चाहिए
जो बस ईश्वर होने भर की पुष्टि करे

आज मुझे
तुम्हारी ज़रूरत महसूस हो रही है ईश्वर
आज सुबह तुम्हारे हर रूप को
प्रणाम किया है मैंने
हर बार दोहराई है एक छोटी-सी प्रार्थना
अगर वह स्वीकार हो जाती है
तो मैं इन सभी तर्कों के विरुद्ध कहूँगा
मुझे तुम पर भरोसा है
तुम्हारे होने या न होने से
मुझे क्या फर्क पड़ना है!

-राजेश्वर वशिष्ठ
 भारत

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश