हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस । ते नर जमपुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। १ ।।
अंतरगति रार्चैँ नहीं, बाहर कथैं उदास । ते नर जम पुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। २ ।।
रैदास कहें जाके ह्रदै, रहै रैन दिन राम । सो भगता भगवंत सम, क्रोध न ब्यापै काम ।। ३
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास । प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।। ४
रैदास तूँ कावँच फली, तुझे न छीपै कोइ । तैं निज नावँ न जानिया, भला कहाँ ते होइ ।। ५ ।।
रैदास राति न सोइये, दिवस न करिये स्वाद । अह-निसि हरिजी सुमिरिये, छाड़ि सकल प्रतिवाद ।। ६ ।।
- रैदास
[रैदासजी की बाणी]
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