चक्की के पाट का चनों के प्रति व्यवहार बड़ा निर्मम था। अतः एक दिन कुछ चनों ने मिलकर उसे फोड़ दिया। चने चाहते थे कि पाट ऐसा हो, जो उनके दर्द को समझे और उनकी भावनाओं की कद्र करे।
पाट बदल दिया गया। नया पाट पहले पाट से कहीं भारी था। चक्की फिर चलने लगी। चने अब भी पिस रहे थे।
- डॉ॰ रामनिवास मानव
[साभार : पवनवेग, अंबाला शहर, 1981]
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