जहाँ नंगोने की थारी वहाँ जनता है उमड़ी भारी, सिकुड़ गई चेहरे की चमड़ी बिगड़ी है सूरत प्यारी, फिर भी कुटे और छने नंगोना चल रही प्याली पर प्याली।
बेटा बिना फीस दे पढ़ता बेटी बिन पुस्तक के, फिर भी बापू रात-रात भर पिये नंगोना कसके।
कभी-कभी भोजन भी दूभर घर में पड़ गये लाले, फिर भी बापू पिये रात भर दिन में खाट सम्भाले।
माता जी रोके-टोके तो झाड़ पड़े या पेटी, यही नंगोना फीजी का है कहें "सजीवन बूटी"।
-सुभाष मुनेश्वर, वैलिंगटन न्यूज़ीलैंड ई-मेल : smuneshwar@gmail.com
[कावा, फीजी में नगोना के रूप में जाना जाता है। यह दक्षिण प्रशांत संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो पूरे क्षेत्र में विश्राम और तनाव मुक्ति के लिए उपयोग किया जाता है। कावा पौधे की पीसी हुई जड़, पानी में घोलकर और एक किरकिरा मटमैला तरल पेय तैयार किया जाता है। पहली बार उपयोग करने वाले को कभी-कभी मिट्टीयुक्त पानी का स्वाद आता है। इस पेय से मुंह हल्का सुन्न हो जाता है और सामान्यत व्यक्ति शांत ही रहता है।] |